अर्देशिर बुरज़ोरजी तारापोरे - Ardeshir Tarapore : एक वीरता की मिसाल

अर्देशिर बुरज़ोरजी तारापोरे भारतीय सेना के एक बहादुर और प्रेरणास्पद अधिकारी थे, जिन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अद्वितीय साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

अर्देशिर बुरज़ोरजी तारापोरे जीवन परिचय - Ardeshir Tarapore Biography

जन्म18 अगस्त 1923
मुंबई, बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश राज
देहांत16 सितम्बर 1965
 चविंडह (Chawinda), पाकिस्तान
निष्ठाहैदराबाद प्रांतभारत
सेवा/शाखाहैदराबाद सेनाभारतीय थलसेना
सेवा वर्ष1940-1951 (हैदराबाद सेना)
1951-1965 (भारतीय थलसेना)
उपाधिलेफ्टिनेंट कर्नल
सेवा संख्यांकIC-5565
दस्ताहैदराबाद लांसर्सपूना हार्स (17 हार्स)
युद्ध/झड़पें1947 का भारत-पाक युद्धचविंडह
(Chawinda) का युद्ध
सम्मानपरमवीर चक्र

प्रारंभिक जीवन

अर्देशिर तारापोरे का जन्म 18 अगस्त 1923 को महाराष्ट्र के मुंबई शहर में एक पारसी परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही अनुशासित और प्रेरणास्पद व्यक्तित्व के धनी थे। पढ़ाई के दौरान ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी, और उन्होंने सेना में शामिल होने का निर्णय लिया।

सैन्य करियर

अर्देशिर तारापोरे भारतीय सेना की 17 हॉर्स (पोइना हॉर्स) रेजिमेंट में शामिल हुए और अपनी मेहनत, नेतृत्व और युद्ध कौशल के लिए जल्दी ही पहचाने जाने लगे। वह एक बेहतरीन टैंक कमांडर के रूप में जाने जाते थे और उन्हें अपने सैनिकों की गहरी परवाह थी।

1965 का भारत-पाक युद्ध

1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा, तो मेजर अर्देशिर तारापोरे को सियालकोट सेक्टर में एक महत्वपूर्ण मिशन सौंपा गया। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। तारापोरे की टुकड़ी को पाकिस्तानी टैंकों और भारी फायरपावर से जूझना पड़ा।

उन्होंने चाविंडा के पास दुश्मन के कई टैंकों को ध्वस्त किया और बार-बार गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद युद्धक्षेत्र नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने नेतृत्व में 60 से अधिक पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। अंततः, 16 सितंबर 1965 को, वे वीरगति को प्राप्त हुए।

परमवीर चक्र

उनकी अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान के लिए मेजर अर्देशिर तारापोरे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनके सैन्य कौशल और मातृभूमि के प्रति असीम समर्पण का प्रतीक है।

स्मृति और प्रेरणा

आज भी अर्देशिर तारापोरे भारतीय सेना और देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्चा वीर वही होता है जो अपने कर्तव्य के लिए प्राणों की आहुति देने से भी पीछे न हटे।

उनकी स्मृति में कई सैन्य प्रतिष्ठानों और स्कूलों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनका नाम हमेशा भारतीय वीरता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

अर्देशिर बुरज़ोरजी तारापोरे का जीवन साहस, कर्तव्य और बलिदान की मिसाल है। उनका पराक्रम हमें यह सिखाता है कि जब देश की रक्षा की बात हो, तो किसी भी कठिनाई के सामने झुकना नहीं चाहिए।