अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025: मन की शांति और आत्मिक उत्थान का वैश्विक पर्व

Harsh
June 20, 2025
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025: मन की शांति और आत्मिक उत्थान का वैश्विक पर्व

हर साल 21 जून को विश्वभर में मनाया जाने वाला 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' अब सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि मानवता को स्वास्थ्य, सद्भाव और शांति का संदेश देने वाला एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है। भारत की प्राचीन परंपरा का यह अनमोल उपहार, योग, आज दुनिया के कोने-कोने में स्वीकार किया जा रहा है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को जोड़ने वाली एक पवित्र साधना है।

योग: आसन नहीं, जीवन का अनुशासन

आजकल जब हम योग की बात करते हैं, तो अक्सर हमारे मन में जटिल आसन और शारीरिक मुद्राएँ आती हैं। लेकिन महर्षि पतंजलि ने अपने 'योग सूत्रों' में योग को कहीं अधिक गहरे अर्थ में परिभाषित किया है। योग का वास्तविक सार हमारे भीतर की यात्रा है, बाहरी दुनिया से हटकर स्वयं से जुड़ने का मार्ग है।

आइए, पतंजलि के कुछ महत्त्वपूर्ण योग सूत्रों पर नज़र डालते हैं, जो हमें योग के वास्तविक मर्म को समझने में मदद करते हैं:

  1. "अथ योगानुशासनम्।" (Atha yogānuśāsanam)
    • अर्थ: अब, योग के अनुशासन की शुरुआत की जाती है।
    • व्याख्या: यह महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों का पहला ही सूत्र है। यह हमें बताता है कि योग कोई आकस्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित और अनुशासित अभ्यास है। 'अथ' शब्द यहाँ एक नए और महत्वपूर्ण आरंभ का संकेत देता है – जैसे कि अब हम एक ऐसे विषय में प्रवेश कर रहे हैं, जो जीवन को पूर्णतः बदल सकता है। यह हमें यह समझने के लिए तैयार करता है कि योग सिर्फ अभ्यास नहीं, बल्कि एक जीवन शैली और एक अनुशासन है जिसे अपनाया जाना चाहिए।
  2. "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।" (Yogaś Citta Vṛtti Nirodhaḥ)
    • अर्थ: योग चित्त की वृत्तियों (मन की चंचलताओं) का निरोध करना है।
    • व्याख्या: यह योग की सबसे मौलिक और महत्वपूर्ण परिभाषा है। हमारा मन हमेशा विचारों, भावनाओं और कल्पनाओं से भरा रहता है – ये ही 'चित्त की वृत्तियाँ' हैं। योग का लक्ष्य इन चंचल वृत्तियों को शांत करना, उन्हें नियंत्रित करना है। जब मन शांत होता है, तब हम अपने वास्तविक स्वरूप को देख पाते हैं, स्वयं के साथ जुड़ पाते हैं। यह हमें आंतरिक शांति और स्पष्टता प्रदान करता है, जो आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद आवश्यक है।
  3. "स्थिरसुखमासनम्।" (Sthira-sukham āsanam)
    • अर्थ: आसन वह है जो स्थिर और सुखदायक हो।
    • व्याख्या: यह सूत्र हमें बताता है कि योग के आसन कैसे होने चाहिए। आसन का उद्देश्य सिर्फ शारीरिक लचीलापन बढ़ाना नहीं, बल्कि शरीर को ध्यान के लिए तैयार करना है। कोई भी आसन तभी प्रभावी होता है जब वह स्थिर (बिना हिले-डुले) और सुखदायक (आरामदायक) हो। यदि आसन में स्थिरता और सुख नहीं है, तो मन अशांत रहेगा और हम ध्यान या प्राणायाम पर केंद्रित नहीं हो पाएंगे। यह सूत्र हमें धैर्य और अपने शरीर की सीमाओं का सम्मान करने का पाठ सिखाता है।

योग के बहुआयामी लाभ

योग केवल इन सूत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है:

  • शारीरिक स्वास्थ्य: योग आसन शरीर को लचीला, मज़बूत और स्वस्थ बनाते हैं। यह पाचन, रक्त संचार और तंत्रिका तंत्र को बेहतर बनाता है।
  • मानसिक शांति: प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) और ध्यान मन को शांत करते हैं, तनाव और चिंता को कम करते हैं, और एकाग्रता बढ़ाते हैं।
  • भावनात्मक संतुलन: योग भावनाओं को समझने और उन्हें सकारात्मक रूप से प्रबंधित करने में मदद करता है, जिससे भावनात्मक स्थिरता आती है।
  • आत्मिक जागृति: योग हमें अपने अंतर्मन से जोड़ता है, जीवन के गहरे अर्थों को समझने में मदद करता है और आत्मिक विकास की ओर ले जाता है।

आइए, योग को जीवन का हिस्सा बनाएं

आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर, आइए हम सब यह संकल्प लें कि योग को केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि अपने दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बनाएंगे। चाहे आप शुरुआती हों या अनुभवी योगी, हर उम्र और हर स्तर के लिए योग के विभिन्न रूप उपलब्ध हैं।

योग अपनाएं, और एक स्वस्थ, शांत और अधिक सार्थक जीवन की ओर कदम बढ़ाएं। यह न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन में बदलाव लाएगा, बल्कि एक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण में भी योगदान देगा।∎

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