नेल्सन मंडेला : जयंती विशेष 18 जुलाई 

Sameer Raj
July 18, 2024
नेल्सन मंडेला : जयंती विशेष 18 जुलाई 

नेल्सन रोलिहलाहला मंडेला, आम बोलचाल की भाषा में नेल्सन मंडेला, एक दक्षिण अफ़्रीकी रंगभेद-विरोधी कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे। वे 1994 से 1999 तक दक्षिण अफ़्रीका के पहले राष्ट्रपति रहे। वह देश के पहले अश्वेत राष्ट्र प्रमुख थे और पूर्ण रूप से प्रतिनिधि लोकतांत्रिक चुनाव में चुने गए पहले व्यक्ति थे। आज 18 जुलाई को उनकी जयंती पर जानतें हैं उनके बारे में कुछ विशेष बातें।

Nelson Mandela : Biography

Full NameNelson Rolihlahla Mandela
Date of BirthJuly 18, 1918
Date of DeathDecember 5, 2013
Cause of DeathProlonged respiratory infection

Aged
95 years
Nelson Mandela spouse(s)3 wives
Evelyn Ntoko Mase (m. 1944; div. 1958)​
Winnie Madikizela (m. 1958; div. 1996)
Graça Machel ​(m. 1998)

प्रारंभिक जीवन

  • नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। वे पूर्वी केप के मवेज़ो गांव में मदीबा कबीले में जन्मे थे।
  • उनकी मां का नाम था नॉनकाफी नोसेकेनी और उनके पिता नकोसी मफाकन्याइसवा गडला मंडेला थे।
  • उनके पिता थेम्बू लोगों के कार्यवाहक राजा जोंगिंटबा के प्रमुख सलाहकार थे।
  • वे अपनी माँ नोसकेनी की प्रथम और पिता की सभी संतानों में 13 भाइयों में तीसरे थे। वर्ष 1930 में, जब वह 12 वर्ष के थे, उनके पिता की मृत्यु हो गई थी।
  • नेल्सन मंडेला ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ‘क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल’ से पूरी की। तत्पश्चात, स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से ली। इस कारण से ईसाई धर्म का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • 1939 में, मंडेला ने प्रतिष्ठित फोर्ट हेयर विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जो उस समय काले अफ्रीकी छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का एकमात्र पश्चिमी मॉडल वाला संस्थान था।
  • हालाँकि, वे अपनी शिक्षा कभी पूरी नहीं कर पाए क्योंकि विश्वविद्यालय की नीतियों के विरुद्ध बहिष्कार करने के कारण उन्हें निष्कासित कर दिया गया था।
  • संसथान से निष्कासित होने के बाद मंडेला जब घर लौटे तो उन्हें पता चला कि उनकी शादी तय हो गई है। इससे बचने के लिए वह जोहान्सबर्ग भाग गये और रात्रि प्रहरी के रूप में काम करने लगे।
  • उन्होंने पत्राचार द्वारा अपनी स्नातक की डिग्री के लिए भी अध्ययन किया और कानून क्लर्क के रूप में रोजगार पाया।

राजनीति में प्रवेश 

वह वर्ष 1944 में अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) में शामिल हुए। उन्होंने कई अन्य नेताओं के साथ इसकी युवा शाखा की भी स्थापना की, जिसे अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस यूथ लीग कहा जाता है। एएनसी ने शांतिपूर्ण, अहिंसक तरीकों से सभी दक्षिण अफ़्रीकी लोगों के लिए पूर्ण नागरिकता के लिए अपना अभियान शुरू किया।

रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन

उन्होंने रंगभेदी नस्लीय पृथक्करण नीति के साथ अफ़्रीकनेर-प्रभुत्व वाली नेशनल पार्टी की 1948 की चुनावी जीत के बाद, स्वतंत्रता चार्टर को अपनाया, जिसने रंगभेद-विरोधी कारण का बुनियादी कार्यक्रम प्रदान किया। नेल्सन मंडेला और साथी वकील ओलिवर टैम्बो ने इस अवधि के दौरान मंडेला और टैम्बो लॉ फर्म को चलाया, और कई अश्वेतों को मुफ्त या कम लागत वाली कानूनी सलाह दी, जो अन्यथा कानूनी प्रतिनिधित्व के बिना होते।

5 अगस्त, 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिये उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया जिसमें वे तत्कालीन व्यवस्था के द्वारा दोषी सिद्ध हुए। 12 जुलाई, 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। सज़ा के लिये उन्हें रॉबेन द्वीप की जेल भेज दिया गया। नेल्सन मंडेला ने जेल में भी अश्वेत कैदियों को लामबन्द करना शुरू कर दिया था। वे अपने जीवन के 27 वर्ष कारागार में रहे। अन्ततः 11 फ़रवरी 1990 को उनकी रिहाई हुई। जेल से उनकी रिहाई कुछ शर्तों और समझौतों पर हुई थी। समझौते और शान्ति की नीति के तहत उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी।

बने दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति 

वर्ष 1994 में दक्षिण अफ्रीका में चुनाव हुए। ये चुनाव बिना किसी रंगभेद के संपन्न हुए। इसे दक्षिण अफ्रीका के लोगों (विशेषकर अश्वेत लोगों) का संघर्षों का ही परिणाम कहा जाना चाहिए कि अंततोगत्वा उन्हें रंगभेद से मुक्ति मिल गयी। इसमें नेल्सन मंडेला का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान था।

इन चुनावों में अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस को 62 प्रतिशत मत प्राप्त हुए तथा बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई, 1994 को मंडेला अपने देश के सर्वप्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने।

अंतिम समय और विरासत 

5 दिसंबर 2013 को 95 वर्ष की आयु में फेफड़ों के संक्रमण से उनकी मृत्यु हो गई।

मंडेला के लेख और भाषण ‘आई एम रेडीड टू डाई’, ‘नो इज़ी वॉक टू फ्रीडम’, ‘द स्ट्रगल इज़ माई लाइफ’, और ‘इन हिज़ ओन वर्ड्स’ में एकत्र किए गए थे। मंडेला की आत्मकथा ‘लॉन्ग वॉक टू फ़्रीडम’ (जो उनके प्रारंभिक जीवन और जेल में बिताए गए वर्षों का विवरण देती है) 1994 में प्रकाशित हुई थी।

उन्हें अपने जीवनकाल में विभिन्न देशों और संगठनों से कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए थे। मंडेला को 40 वर्षों में 260 से अधिक पुरस्कार मिले, जिनमें सबसे उल्लेखनीय 1993 का नोबेल शांति पुरस्कार है। भारत ने उन्हें 1990 में भारत रत्न से सम्मानित किया। वे गांधीजी के अहिंसा के मार्ग से अत्यंत प्रभावित थे।

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