कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मध्य पूर्व में जारी ईरान-इजरायल संघर्ष पर अपनी बात रखते हुए अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में एक महत्वपूर्ण लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने भारत के पारंपरिक रिश्तों, वर्तमान स्थिति और नरेंद्र मोदी सरकार की नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में भारत और ईरान के बीच गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर ज़ोर दिया है। उन्होंने लिखा, "ईरान लंबे समय से भारत का क़रीबी दोस्त रहा है और हमारे रिश्ते ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से गहरे जुड़े हुए हैं।" उन्होंने याद दिलाया कि ईरान ने कई अहम मौक़ों पर भारत का समर्थन किया है, ख़ासकर जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर। इस संदर्भ में, उन्होंने साल 1994 का विशेष रूप से ज़िक्र किया, जब ईरान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में कश्मीर को लेकर भारत के ख़िलाफ़ लाए गए प्रस्ताव को रोकने में महत्वपूर्ण मदद की थी।
लेख में सोनिया गांधी ने भारत और इजरायल के बीच हाल के वर्षों में मज़बूत हुए रणनीतिक रिश्तों को भी स्वीकार किया। उन्होंने लिखा, "वहीं, पिछले कुछ सालों में भारत और इसराइल के बीच भी मज़बूत रणनीतिक रिश्ते बने हैं।" इन्हीं दोनों समीकरणों के आधार पर उन्होंने तर्क दिया कि "यही वजह है कि भारत एक विशेष स्थिति में है, जहां वह न सिर्फ़ नैतिक रूप से बल्कि कूटनीतिक रूप से भी इस क्षेत्र में शांति लाने और तनाव कम करने में अहम भूमिका निभा सकता है।"
सोनिया गांधी ने अपने लेख में यह भी बताया कि ईरान पर इजरायल के हमलों को पश्चिमी देशों के समर्थन से बल मिला है, जिससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ा है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी ने 7 अक्टूबर 2023 को हमास की ओर से इजरायली नागरिकों पर किए गए हमलों की कड़ी आलोचना की थी।
हालांकि, उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति पर निशाना साधते हुए लिखा, "इस गंभीर मानवीय संकट के दौरान, नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत की उस पुरानी और साफ़ नीति से दूरी बना ली है, जो हमेशा यह कहती रही है कि इसराइल और फ़लस्तीन को दो अलग-अलग आज़ाद देशों के रूप में, शांति और सम्मान के साथ एक-दूसरे के साथ रहना चाहिए।"
यह लेख ऐसे समय में आया है जब मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है, और भारत की विदेश नीति की भूमिका पर बहस छिड़ी हुई है।