करौली राजवंश, राजस्थान

Harsh
June 02, 2025
करौली राजवंश, राजस्थान

भारत में राजस्थान के राजपूतों का इतिहास

राजपूत (संस्कृत शब्द राजा-पुत्र , "राजा का बेटा") पश्चिमी, मध्य, उत्तरी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों के पितृवंशीय कुलों में से एक का सदस्य होता है। वे उत्तर भारत के शासक हिंदू योद्धा वर्गों के वंशज होने का दावा करते हैं। 6वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान राजपूतों का बोलबाला रहा। 20वीं शताब्दी तक, राजपूतों ने राजस्थान और सौराष्ट्र की रियासतों के "भारी बहुमत" पर शासन किया जहाँ सबसे अधिक संख्या में रियासतें पाई जाती थीं।

राजपूतों के कई प्रमुख उपविभाग हैं, जो जाति से नीचे का चरण है। ये वंश विभिन्न स्रोतों से दावा किए गए वंश को दर्शाते हैं, और राजपूतों को आम तौर पर तीन प्राथमिक वंशों में विभाजित माना जाता है: सूर्यवंशी सौर देवता सूर्य से वंश को दर्शाता है, चंद्र देवता चंद्र से चंद्रवंशी, और अग्नि देवता अग्नि से अग्निवंशी। कम प्रसिद्ध वंशों में उदयवंशी, राजवंशी और ऋषिवंशी शामिल हैं। विभिन्न वंशों के इतिहास को बाद में वंशावलियों के रूप में जाने जाने वाले दस्तावेजों में दर्ज किया गया था।

करौली सिटी पैलिस

मुख्य रूप से...

राजपूत जो पवित्र ग्रंथों, पुराणों और दो महान भारतीय महाकाव्यों, “महाभारत” और “रामायण” में वर्णित छत्तीस शाही क्षत्रिय कुलों के वंशज हैं, उन्हें तीन मूल वंशों ( वंशों या वंशों ) में वर्गीकृत किया गया है:सूर्यवंशी :या रघुवंशी (सौर वंश के कुल), मनु, इक्ष्वाकु, हरिश्चंद्र, रघु, दशरथ और राम के वंशज थे।चंद्रवंशी :या सोमवंशी (चंद्र वंश के कुल), ययाति, देव नौशा, पुरु, यदु, कुरु, पांडु, युधिष्ठिर और कृष्ण के वंशज थे।

  • यदुवंशी वंश चंद्रवंशी वंश की एक प्रमुख उपशाखा है। भगवान कृष्ण यदुवंशी पैदा हुए थे
  • पुरुवंशी वंश चंद्रवंशी राजपूतों की एक प्रमुख उप-शाखा है। महाकाव्य महाभारत के कौरव और पांडव पुरुवंशी थे।
  • अग्निवंशी :अग्निकुल (अग्नि वंश के कुल), अग्निपाल, स्वच्चा, मल्लन, गुलुनसुर, अजपाल और डोला राय के वंशज थे।

इनमें से प्रत्येक वंश या वंश कई कुलों (कुलों) में विभाजित है, जिनमें से सभी एक दूरस्थ लेकिन सामान्य पुरुष पूर्वज से सीधे पितृवंश का दावा करते हैं जो कथित तौर पर उस वंश से संबंधित थे। इन 36 मुख्य कुलों में से कुछ को फिर से शाखाओं या “शाखाओं” में विभाजित किया गया है, जो फिर से पितृवंश के उसी सिद्धांत पर आधारित हैं।

Coins Issued in Karauli State (Karauli)

30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है मगर इस वर्ष कोरोना वायरस संक्रमण के चलते प्रदेश सरकार ने राजस्थान दिवस के अवसर पर होने वाले सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिये। मगर हम आपको बता दें कि राजस्थान की स्थापना में सबसे आगे करौली रही थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा के साथ ही राजपूताना की देशी रियासतों के मुखियाओं में होड़ मच गयी थी। उस समय राजपूताना के भू-भाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाड़ा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा-महाराजाओं का ही राज था।
इतिहासकार वेणूगोपाल शर्मा ने बताया कि अजमेर-मेरकड़ा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था। इस कारण यह तो सीधे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का एकीकरण कर राजस्थान नामक प्रांत बनाया जाना था। रियासतों की मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में सम्पन हुई । इसमें भारत सरकार के गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव बीपी मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।

जयपुर में शासन सुधार समिति की शिफारिशों के आधार पर विधान परिषद की स्थापना के साथ ही करौली, धौलपुर, भरतपुर एवं अलवर प्रजमंडल के नेताओं ने पारस्परिक चर्चा करके विलिनीकरण का निर्णय लिया। गृह मंत्री सरदार पटेल द्वारा चारों रियासतों के प्रजामंडल नेताओं को दिल्ली बुलाया गया साथ ही 27 फरवरी 1948 को चारों राज्यों के शासकों को दिल्ली आमंत्रित करके 28 फरवरी को विलिनीकरण संविदा पर हस्ताक्षर करवा लिए। 16 मार्च 1948 को मत्स्य राज्य का निर्माण कर दिया गया। इस नए संघ का नाम के एम मुंशी के सुझाव पर ही मत्स्य रखा गया। राज्य मंत्री मण्डल में शोभाराम को प्रधान मंत्री, युगल किशोर चतुर्वेदी को उप प्रधान मंत्री व मास्टर भोला राम, गोपीलाल यादव, डा. मंगल सिंह व करौली के चिरंजी लाल शर्मा को मंत्री बनाया गया।

राजस्थान की स्थापना के प्रथम चरण में 18 मार्च 1948 को अलवर, भरतपुर, घौलपुर, करौली रियासतों का विलय करके मत्स्य संघ का औपचारिक उद्घाटन सम्पत्र हुआ। धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख व अलवर राजधानी बनी। दूसरी ओर अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की राजपूताना प्रांतीय सभा द्वारा सभी रियासतों को मिलाकर वृहद राजस्थान की मांग के अनुरूप 25 मार्च 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टॉक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना। 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर रियासत के विलय के बाद नया नाम संयुक्त राजस्थान संघ रखा गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राज प्रमुख बने।
उन्होंने बताया कि 30 मार्च 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर वृहत्तर राजस्थान संघ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। राजस्थान राज्य की स्थापना दिवस के अवसर पर 30 मार्च को जयपुर स्थित जनपथ पर राजस्थान दिवस समारोह के तहत कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। वहीं जिला स्तर पर भी विभिन्त्र कार्यक्रम होते है। मगर इस वर्ष पूरे देश में कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर किये गये लॉक डाउन को लेकर राजस्थान दिवस के होने वाले सभी कार्यक्रम प्रदेश सरकार द्वारा स्थगित कर दिये गये।

करौली (रियासत) लोगो
अर्जुनदेव पाल
विक्रमादित्य पाल

पृथ्वीपाल

उदयपाल
प्रतापरुद्र पाल

चन्द्रसेन पाल
गोपालदास पाल
द्वारिकदास पाल

मुकुंददास पाल

रतनपाल

कुँवरपाल

गोपाल पाल

तुरसन पाल

माणकर्ष

हरवक्षपाल

प्रताप पाल

नरसिंह पाल

मदनपाल

लक्षमणपाल

जयसिंह पाल

अर्जुनपाल

भँवर पाल

भोमपाल

गणेशपाल
कृष्णचंद्र पाल

1984 से करौली के 43वें और वर्तमान महाराजा हैं, (करौली हाउस, न्यू सांगानेर रोड, जयपुर - 302019, राजस्थान, भारत), 1980 में एचएच महारानी रोहिणी कुमारी से शादी हुई, जो एम.एल.ए. के रूप में पहली बार विजेता रहीं।

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