राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बाबरी मस्जिद से जुड़े बयान पर तृणमूल कांग्रेस से निकाले गए विधायक हुमायूं कबीर ने प्रतिक्रिया दी है।
हुमायूं कबीर सोमवार को नया राजनीतिक दल शुरू करने जा रहे हैं। उन्होंने बीते दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की तर्ज पर मस्जिद बनाने के लिए नींव रखी थी।
रविवार को कोलकाता में मोहन भागवत ने कहा, "...अदालत ने बहुत लंबा समय लगाकर एक फ़ैसला दिया और वहां राम मंदिर बना। मस्जिद-मंदिर वाला झगड़ा वहां समाप्त हो गया। अब फिर से बाबरी मस्जिद बनाकर उस झगड़े को शुरू करने का राजनीतिक षड्यंत्र है। न तो ये मुसलमानों की भलाई में है और न ही हिंदुओं की भलाई में है।"
उनके इस बयान पर हुमायूं कबीर ने कहा, "हम मोहन भागवत का सम्मान करते हैं, लेकिन उनका यह अंदाज़ा कि यहां दंगे वगैरह हो सकते हैं, हम ऐसा कुछ नहीं होने देंगे..."
उन्होंने कहा, "मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) और आरएसएस के बीच अंदरूनी संबंध हैं। मोहन भागवत छह महीने पहले 15 दिनों के लिए बंगाल आए थे। अब वह फिर से यहां कैसे आ गए? उन्हें यहां आने के लिए राज्य सरकार की इजाज़त चाहिए।"
पश्चिम बंगाल में एक हुमायूँ कबीर के द्वारा एक नई राजनीतिक पारी की शुरूआत हो रही है, इस पारी की पहली बॉल वे खेल चुके हैं, दूसरी और मोहन भागवत जो माँ चुके थे की ये मैच अयोध्या में उनकी जीत पर खत्म हो चुका है। वे फिर एक बार मैदान में आते नजर आ रहे हैं।
एक तरफ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत हैं जो राम मंदिर निर्माण के बाद बाबरी विवाद को समाप्त मान रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस से निष्कासित विधायक हुमायूं कबीर हैं जो बाबरी मस्जिद की याद में उसी तर्ज पर नई मस्जिद बनवाना चाहते हैं।
एक ओर तो मोहन भागवत ने मस्जिद के नाम पर राजनीतिक को साजिश बताया है तो दूसरी ओर टीएमसी के पूर्व विधायक हुमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की तर्ज पर नई मस्जिद की नींव रखकर एक नई बहस छेड़ दी है। सोमवार को अपनी नई राजनीतिक पार्टी के गठन से ठीक पहले कबीर ने भागवत के दावों को चुनौती दी है।
इस मस्जिद को बनवाने के कई पहलू हैं, जब तक हुमायूँ कबीर खुद इसका खुलासा नहीं कर देते तब तक बाकी सभी के तर्क केवल केवल बातें होंगी, लेकिन इसके कई पहलू है, जैसे धार्मिक रक्षक होने का भाव, जिससे मुस्लिम समुदाय में एक संदेश पहुँचे कि उनकी वह पहचान जो अयोध्या में मंदिर के नीचे दबा दी गई है उसे हुमायूँ कबीर में बाहर निकाल कर फिर खड़ा कर दिया है। इस कदम से मुस्लिम मतदाताओं के बीच एक सकारात्मक और एकजुटता का संदेश जाएगा जिससे हुमायूँ कबीर और उनकी नई पार्टी को फ़ायदा पहुंचेगा।
दूसरा पहलू ये हो सकता है कि, 1992 में जो आधिकारिक फैसला आया था उससे भारत का एक समुदाय नाखुश रहा, जिसकी एक चिंगारी आज तक सुलग रही थी, वही बंगाल में भड़ककर अब आग बन गई है, अब ये एक प्रतीकात्मक विरोध की तरह जल रही है। अब ये अदालती फैसले के खिलाफ एक 'सांकेतिक विरोध' दर्ज कराना है।
तीसरा मुद्दा पहले मुद्दे से जुड़ा है, हम जानते हैं वे नई पार्टी का गठन कर रहे हैं, और उन्हें जीतने के लिए अच्छा खास वोट बैंक चाहिए होगा, जो ईमोशनल ऐंगल से ही आ सकता है, और किसी समुदाय के कुचले हुए धार्मिक समरक को फिर से खड़ा कर उसमें जान फूँक देने से कबीर को वह ईमोशनल ऐंगल मिल गया है।
आपको बता दें पिछले 6 महीने में दूसरी बार बंगाल पहुँचे हैं, इससे पहले वे 15 दिन के लिए वह रह चुके थे और अब फिर एक बार बंगाल पहुँच गए हैं।
इन दौरों का कर्म संगठन का विस्तार समझा जा रहा है, इस विस्तार कार्य में मोहन भागवत खुद जमीनी तौर पर लगे हुए हैं, पिछले कुछ समय में बंगाल में आरएसएस का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है अब इसका कारण क्या है, ये हम समझ सकते हैं कि किसी भी राज्य में जब किसी एक तबके का राजनीतिक दबाव बढ़ने लगता है तब बीजेपी की और से आरएसएस का जमीनी कार्यभार बढ़ जाता है। जिससे उनकी बनी बनाई पृष्टभूमि न टूटे, इसी रोड मॅप को हम कई बार कई राज्यों में देख चुके हैं।
उनके बंगाल आने का दूसरा कारण पहले कारण से जुड़ा हुआ है दरअसल, बदलता राजनीतिक परिदृश्य, ही उनका मुख्य कारण माना जा रहा है,2025-26 के चुनावी समीकरणों को देखते हुए आरएसएस बंगाल में हिंदू समाज के बीच अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहता है।
तीसरा कारण सांस्कृतिक विमर्श को समझा जा रहा है, भागवत का कोलकाता दौरा अक्सर बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिक विचारकों के साथ संवाद के लिए होता है ताकि 'बंगाली अस्मिता' के साथ हिंदुत्व का समन्वय बिठाया जा सके।