आइए जानते हैं किसने शुरू की थी पितृपक्ष में श्राद्ध की परंपरा

September 16, 2022
आइए जानते हैं किसने शुरू की थी पितृपक्ष में श्राद्ध की परंपरा

आशिवन मास के कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले श्राध्द हमारी सनातन परंपरा का हिस्सा है. त्रेता युग में सीता
द्वारा दशरथ के पिंड दान की कथा बहुतों को मालूम ही होगी. लेकिन श्राद्ध का प्रारंभिक उल्लेख द्वापर युग में
महाभारत काल के समय में मिलता है. महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह के युधिष्ठिर के साथ श्राद्ध
के संबंध में बातचीत का वर्णन मिलता है. महाभारत काल में सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश अत्रि मुनि के महर्षि
निमी को दिया था. इसे सुनने के बाद ऋषि मिनी ने श्राद्ध का आरंभ किया. उसके बाद अन्य महर्षिओं और चारों
वर्णों के लोगों ने भी याद करना शुरू कर दिया.

वर्षों तक श्राद्ध का भोजन करते रहने से पितृ देवता पूर्ण तृप्त हो गए हैं. राज का भजन लगातार करने से पितरों
को अजीर्ण रोग हो गया. इससे उन्हें कष्ट होने लगा. अपनी इस समस्या को लेकर वह ब्रह्मा जी के पास गए और
उनसे इस रोग से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. पितरों की प्रार्थना से द्रवित होकर ब्रह्माजी ने कहा – आपका
कल्याण अग्निदेव करेंगे, इस पर अग्निदेव ने कहा – आपसे बाद में, मैं आपके साथ भोजन करूंगा, मेरे साथ रहने
से आपका अजीर्ण दूर होगा. यह सुनकर पितर प्रसन्न हुए बस तभी से श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भोग दिया
जाने लगा और पितरो को अजीर्ण रोग से मुक्ति मिल गई. ऐसा कहा जाता है कि अग्नि में हवन करने के बाद
पितरों के निमित्त दिए जाने वाले पिंडदान को ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते.

सबसे पहले पिता उनके बाद दादा और उसके पश्चात परदादा के निमित्त पिंड दान करना चाहिए यही श्राद्ध की
विधि है. प्रत्येक पिंड देते समय ध्यान मग्न होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा ‘ सोमाय पितृमते स्वाहा ‘ का
उच्चारण करना चाहिए. पितृपक्ष में सभी दिन श्राद्ध किया जा सकता है लेकिन इसमें कुछ विशिष्ट दिन है. जिनमें
आप अपने संबंधित व्यक्तियों का श्राद्ध कर सकते हैं. जिन पूर्वजो की मृत्यु तिथि ज्ञात ना हो उनका श्राद्ध
अमावस्या के दिन होता है. साधवा स्त्री की मृत्यु किसी भी तिथि को हो, लेकिन पितृपक्ष में उनका श्राद्ध नवमी
तिथि को किया जाता है. कोई व्यक्ति अपने जीवन काल में सन्यासी हो गया हो उसकी मृत्यु किसी भी स्थिति में
हो लेकिन पित्र पक्ष में उसका श्राद्ध दशमी तिथि को होता है. दुर्घटना, हत्या, युद्ध में या किसी जीव जंतु के
काटने से किसी भी स्थिति में हुए मृत व्यक्ति का श्राद पितर पक्ष में चतुर्दशी तिथि को होता है.

Eng