नई दिल्ली: बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान को लेकर मचे घमासान के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) को आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे विभिन्न दस्तावेजों को स्वीकार करने का महत्वपूर्ण सुझाव दिया है। इस पर कांग्रेस पार्टी ने एक मिश्रित प्रतिक्रिया दी है, जहाँ उसने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का स्वागत किया है वहीं अभियान की मंशा और समय को लेकर अपनी चिंताएं दोहराई हैं।
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव और कांग्रेस की प्रतिक्रिया
गुरुवार (10 जुलाई 2025) को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में, कोर्ट ने सीधे तौर पर SIR पर रोक नहीं लगाई, लेकिन उसने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने को कहा कि कोई भी पात्र मतदाता इस प्रक्रिया से वंचित न हो। इसके लिए कोर्ट ने आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी सत्यापन के लिए स्वीकार करने का सुझाव दिया, जो विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और महागठबंधन की एक प्रमुख मांग रही है।
कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिक दस्तावेजों को स्वीकार करने के सुझाव को एक सकारात्मक कदम बताया है। पार्टी नेताओं का मानना है कि यह सुझाव उन लाखों गरीब और प्रवासी मतदाताओं को राहत दे सकता है जिनके पास सभी मांगे गए विशिष्ट दस्तावेज नहीं होते। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अनौपचारिक रूप से कहा, "सुप्रीम कोर्ट का सुझाव सही दिशा में है। हम लगातार यही मांग कर रहे थे कि चुनाव आयोग को व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ताकि कोई भी भारतीय नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न हो।"
अभियान की टाइमिंग और मंशा पर कांग्रेस की पुरानी चिंताएं
हालांकि, कांग्रेस ने इस अभियान की टाइमिंग और उसकी मंशा को लेकर अपनी पुरानी चिंताओं को भी दोहराया है। कांग्रेस और महागठबंधन के नेताओं ने पहले आरोप लगाया था कि यह अभियान बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मतदाताओं को वोटर लिस्ट से हटाने की एक सुनियोजित साजिश है। राहुल गांधी सहित कई शीर्ष नेताओं ने इस मुद्दे पर 'बिहार बंद' और विरोध प्रदर्शनों में भी भाग लिया था।
पार्टी का कहना है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दस्तावेजों को शामिल करने का सुझाव दिया हो, लेकिन चुनाव से कुछ महीने पहले इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के सत्यापन का काम जल्दबाजी और भ्रम पैदा कर सकता है। कांग्रेस अब चुनाव आयोग पर निगाहें गड़ाए हुए है कि वह सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को किस गंभीरता से लेता है और इसे किस तरह से लागू करता है ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें।∎