आपने प्रधानमंत्री (किसी भी लोकतंत्र में संवैधानिक रूप से सबसे ज्यादा शक्तिशाली पद यही माना गया है) पद के बारे में तो बहुत सुना होगा, आप कई प्रधानमंत्रियों के नाम कार्यकाल तथा उनके कार्यकाल के मुख्य नीतियों से भी परिचित होंगे लेकिन क्या आप उप प्रधानमंत्री के पद के बारें में जानते हैं? और भारत के लोकतंत्र में उप प्रधानमंत्री पद का क्या काम है? उप प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल कितना होगा है? अब तक भारत में कितने उप प्रधान मंत्री रहें है? क्या भारत के उप प्रधानमंत्री की शक्ति भी प्रधानमंत्री जितनी ही होती हैं या उससे कम? इन सभी सवालों के विस्तृत जानकारी इस लेख में मिलेगी जिससे आपको भारत के संविधान को जानने के क्रम में एक कदम और आगे बढ़ेंगे।
स्वतंत्रता के बाद से अब तक भारत में कुल 7 उप-प्रधानमंत्री रह चुके हैं। सरदार पटेल से शुरू होकर लालकृष्ण आडवाणी तक का यह सफर राजनीतिक इतिहास की दिलचस्प कहानी है। वर्तमान में यह पद 2004 से रिक्त है।
भारतीय संविधान में उप-प्रधानमंत्री का कोई जिक्र नहीं है। यह न तो संवैधानिक पद है और न ही इसकी कोई बाध्यता है। फिर भी भारतीय राजनीति में इस पद का अपना महत्व रहा है।
राजनीतिक जरूरत से जन्मा पद
जब भी प्रधानमंत्री को लगता है कि उन्हें किसी वरिष्ठ नेता को विशेष सम्मान देना है या गठबंधन की राजनीति में संतुलन बनाना है, तब यह पद बनाया जाता है। यह एक तरह से राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
सम्मान का प्रतीक, शक्ति का नहीं
उप-प्रधानमंत्री के पास कोई विशेष संवैधानिक अधिकार नहीं होते। वे एक कैबिनेट मंत्री की तरह ही काम करते हैं। हां, प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वे सरकारी कार्यक्रमों की अध्यक्षता कर सकते हैं।
उत्तराधिकार का अधिकार नहीं
अगर प्रधानमंत्री का पद खाली हो जाए, तो उप-प्रधानमंत्री अपने आप प्रधानमंत्री नहीं बन जाते। नया प्रधानमंत्री चुनने की प्रक्रिया अलग से चलती है।
भारत के उप-प्रधानमंत्री — Deputy Prime Ministers of India | कार्यकाल —Tenure | प्रधानमंत्री — Prime Minister |
सरदार वल्लभभाई पटेल – Sardar Patel | 1947–1950 | जवाहरलाल नेहरू – Jawaharlal Nehru |
मोरारजी देसाई – Morarji Desai | 1967–1969 | इंदिरा गाँधी – Indira Gandhi |
चौधरी चरण सिंह – Chaudhary Charan Singh | 1979–1979 | मोरारजी देसाई – Morarji Desai |
जगजीवन राम – Jagjivan Ram | ||
वाई. बी. चव्हाण – Y. B. Chavan | 1979–1980 | चौधरी चरण सिंह – Chaudhary Charan Singh |
देवी लाल – Devi Lal | 1989–1990 | वी. पी. सिंह – V.P. Singh |
1990–1991 | चंद्रशेखर – Chandra Shekhar | |
लालकृष्ण आडवाणी – Lal Krishna Advani | 2002–2004 | अटल बिहारी वाजपेयी – Atal Bihari Vajpayee |
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भारत में कितने प्रधान मंत्री रह चुके है तथा वह क्या भूमिका निभाते है ये तो आप सभी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में पहले कितने उप प्रधान मंत्री रह चुके है ? जी हाँ आज हम बात करेंगे भारत में उत्तम भूमिका निभाने वाले उप प्रधान मंत्रियों की, इससे पहले आपको बता दें कि भारत के उप-प्रधानमंत्री काम क्या करते है ? यह केंद्रीय मंत्रिपरिषद का एक वरिष्ठ सदस्य होता है जो शासन निर्णय लेने में प्रधानमंत्री की सहायता करता है और विभिन्न क्षमताओं में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। हालाँकि इस पद की कोई परिभाषित सवैधानिक भूमिका नहीं है, फिर भी यह सरकार की संरचना में महत्व रखता है। अब की बात करे तो वर्तमान समय में भारत में कोई भी उप प्रधान मंत्री नहीं है यह स्थान 23 मई 2004 से रिक्त है। साथ ही आपको बता दें कि भारत के सबसे पहले उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे तथा अंतिम बार लाल कृष्ण आडवाणी ने उप प्रधान मंत्री का पद संभाला था।
भारतीय राजनीति में गठबंधन युग (coalition era) की शुरुआत के बाद से उप-प्रधानमंत्री का पद एक strategic weapon बन गया है। जब भी कोई पार्टी दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाती है, तो सहयोगी दल के नेता को उप-प्रधानमंत्री बनाना एक smart political move होता है।
विश्वास निर्माण (Trust Building) का माध्यम यह पद गठबंधन के partners के बीच trust building का काम करता है। जब आप किसी को Deputy PM बनाते हैं, तो basically आप यह message देते हैं कि "आप हमारे बराबर के partner हैं, subordinate नहीं।"
सत्ता का बंटवारा (Power Sharing) का Symbol 1977 में जब चरण सिंह और जगजीवन राम दोनों को एक साथ उप-प्रधानमंत्री बनाया गया, तो यह different political streams के बीच power sharing का perfect example था। यह दिखाता है कि कैसे यह पद political accommodation का tool बनता है।
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ (Regional Aspirations) का सम्मान जब देवी लाल उप-प्रधानमंत्री बने, तो यह हरियाणा और जाट समुदाय के लिए pride का moment था। इससे regional parties को लगता है कि उनकी political identity को national level पर recognition मिली है।
गुट प्रबंधन (Faction Management) हर बड़ी पार्टी में अलग-अलग factions होते हैं। Deputy PM का पद इन factions के बीच balance बनाने का काम करता है। यह एक तरीका है different power centers को खुश रखने का।
वरिष्ठ नेता (Senior Leaders) का सम्मान जब यशवंतराव चव्हाण उप-प्रधानमंत्री बने, तो यह महाराष्ट्र lobby और congress के अंदर के senior leaders को satisfy करने का तरीका था। यह दिखाता है कि कैसे यह पद party hierarchy में balance बनाता है।
उत्तराधिकार की योजना बना (Succession Planning) कई बार Deputy PM का पद future leadership के लिए grooming ground का काम करता है। L.K. आडवाणी का case इसका अच्छा example है - वे BJP के future PM candidate माने जाते थे।
वैचारिक संतुलन (Ideological Balance) कभी-कभी party के अंदर अलग-अलग ideological streams होते हैं। Deputy PM बनाकर इन streams के बीच harmony maintain की जाती है।
संवैधानिक निरंतरता(Constitutional Continuity) प्रधानमंत्री जब व्यस्त होते हैं, विदेश यात्रा पर जाते हैं, या अस्वस्थ होते हैं, तो उप-प्रधानमंत्री government का face बनकर continuity ensure करते हैं।
प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency) Deputy PM अक्सर important portfolios भी handle करते हैं। आडवाणी Home Minister थे, चव्हाण Finance Minister थे। इससे administrative load sharing होता है और PM को strategic issues पर focus करने का मौका मिलता है।
संकट प्रबंधन (Crisis Management) Political या national crisis के समय Deputy PM का role crucial हो जाता है। वे PM के साथ मिलकर decision making process में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अंतर-राज्यीय समन्वय (Inter-State Coordination) जब Deputy PM किसी specific state से होते हैं, तो वे center और state के बीच better coordination ensure करते हैं।
लोकतांत्रिक गहनता (Democratic Deepening) जैसे-जैसे भारत में coalition politics mature हो रही है, Deputy PM का role और भी important होता जा रहा है। यह democratic institutions को strengthen करने का तरीका है।
संघीय संरचना( Federal Structure) को मजबूती यह पद federalism की spirit को reflect करता है, जहाँ different states और regions का proper representation होता है।
राजनीतिक स्थिरता (Political Stability) Hung parliaments और coalition governments के era में, Deputy PM का पद political stability maintain करने का effective tool है।
Message to Opposition जब आप किसी को Deputy PM बनाते हैं, तो opposition को यह clear message जाता है कि सरकार में unity है और यह कोई weak coalition नहीं है।
International Representation Deputy PM international forums में भी country का representation करते हैं, जिससे India की diplomatic outreach बढ़ती है।
Media Management Deputy PM अक्सर सरकार के spokesperson का रोल भी निभाते हैं, जिससे PM पर media pressure कम होता है।
यह पद भले ही constitutionally defined न हो, लेकिन politically यह बेहद significant है। यह modern Indian democracy की maturity और complexity का प्रतीक है।
23 मई 2004 के बाद से भारत में कोई उप-प्रधानमंत्री नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं:
मोदी सरकार की रणनीति
प्रधानमंत्री मोदी centralized leadership में विश्वास करते हैं। वे चाहते हैं कि सभी महत्वपूर्ण फैसले उनके level पर ही हों। इससे policy implementation में speed आती है।
भाजपा का पूर्ण बहुमत
जब तक भाजपा का clear majority है, तब तक गठबंधन को खुश रखने की जरूरत नहीं। अगर future में coalition की स्थिति आई, तो शायद यह पद फिर बन सके।
Team India Approach
मोदी जी का approach है कि पूरी cabinet एक team की तरह काम करे। कोई एक व्यक्ति number two न बने, बल्कि सभी मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में equally important हों।
यह पद भारतीय राजनीति की flexibility को दर्शाता है - जब जरूरत हो तो बनाओ, न हो तो न बनाओ। Constitution की यही खूबसूरती है कि यह practical politics के लिए space देता है।
15 अगस्त, 1947 को, जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब से अब तक भारत के 7 उपप्रधान मंत्री हो चुके हैं। वर्तमान सरकार में कोई उपप्रधानमंत्री नहीं है और यह पद 23 मई, 2004 से रिक्त है।
भारत में उपप्रधानमंत्री की भूमिका के बारे में मुख्य बातें:
कोई संवैधानिक शक्ति नहीं: भारत के उपप्रधानमंत्री के पास प्रधानमंत्री जैसी कोई संवैधानिक शक्तियां नहीं होती हैं। वह प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में खुद ही उनके कार्य नहीं संभाल सकते, जब तक कि प्रधानमंत्री खुद उन्हें ऐसा करने के लिए अधिकृत न करें।
राजनीतिक पद: यह पद आमतौर पर राजनीतिक कारणों से बनाया जाता है। जैसे:
गठबंधन को बनाए रखना: गठबंधन सरकार में किसी बड़े सहयोगी दल के नेता को यह पद देकर उसे महत्व देना।
आंतरिक संतुलन: किसी पार्टी के भीतर के वरिष्ठ नेता को सम्मानजनक पद देकर गुटबाजी या आंतरिक असंतोष को रोकना।
मंत्री के रूप में कार्य: भारत में उपप्रधानमंत्री के पास वही शक्तियाँ होती हैं जो एक कैबिनेट मंत्री के पास होती हैं। उन्हें अक्सर गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय या रक्षा मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए जाते हैं। उनका मुख्य काम प्रधानमंत्री की टीम के एक वरिष्ठ सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाना होता है।
उत्तराधिकार का अधिकार नहीं: यदि प्रधानमंत्री का पद रिक्त हो जाता है, तो उपप्रधानमंत्री अपने आप प्रधानमंत्री नहीं बन जाते। प्रधानमंत्री का चुनाव पार्टी के सांसदों द्वारा किया जाता है और यह राजनीतिक प्रक्रिया पर निर्भर करता है।
भारत के इतिहास में कई उपप्रधानमंत्री हुए हैं, जिनमें सरदार वल्लभभाई पटेल (पहले उपप्रधानमंत्री), मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। इन सभी नेताओं ने अपने-अपने समय में सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
वर्तमान स्थिति: वर्तमान में, भारत में कोई भी उपप्रधानमंत्री नहीं है। यह पद तब तक खाली रहेगा जब तक सरकार राजनीतिक कारणों से किसी को इस पद पर नियुक्त नहीं करती।
भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री बनने का गौरव सरदार वल्लभभाई पटेल को मिला। स्वतंत्रता के ठीक बाद जब देश को एकजुट करने की चुनौती थी, तब पटेल जी ने नेहरू की छत्रछाया में इस जिम्मेदारी को संभाला।
राष्ट्र निर्माता की भूमिका
तीन साल के अपने कार्यकाल (15 अगस्त 1947 से 15 दिसंबर 1950) में पटेल जी ने गृहमंत्री के रूप में 565 रियासतों को भारत में मिलाने का ऐतिहासिक काम किया। उन्हें "भारत का लौह पुरुष" कहा जाना केवल उनकी कठोरता के लिए नहीं, बल्कि उनकी दृढ़ संकल्पशक्ति के लिए था।
विरासत जो आज भी जीवित है
पटेल जी को 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनकी जयंती (31 अक्टूबर) को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाना इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्र आज भी उनके योगदान को याद करता है।
इंदिरा गांधी की सरकार में उप-प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई भारतीय राजनीति के सबसे दिलचस्प व्यक्तित्वों में से एक थे। 13 मार्च 1967 से 19 जुलाई 1969 तक के अपने कार्यकाल में उन्होंने अनुशासन और सादगी की मिसाल कायम की।
दो देशों का सम्मान
मोरारजी देसाई एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सर्वोच्च सम्मान मिले। भारत रत्न के साथ-साथ उन्हें पाकिस्तान का 'निशान-ए-पाकिस्तान' भी मिला - यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय थे।
उप-प्रधानमंत्री से प्रधानमंत्री तक
बाद में वे स्वयं भारत के प्रधानमंत्री भी बने, जो दर्शाता है कि उप-प्रधानमंत्री का पद कई बार बड़ी जिम्मेदारियों की तैयारी का मंच भी बन सकता है।
1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो भारतीय राजनीति में एक अनोखा प्रयोग हुआ। पहली बार दो उप-प्रधानमंत्री एक साथ नियुक्त किए गए - चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम।
किसान राजनीति के सरताज
चरण सिंह जी का कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो (24 जनवरी से 28 जुलाई 1979), लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा काफी दिलचस्प थी। किसान राजनीति के इस दिग्गज ने अपने संघर्ष से यह साबित किया था कि भारत की असली शक्ति गांवों में बसती है।
उप-प्रधानमंत्री से सीधे प्रधानमंत्री
28 जुलाई 1979 को एक अनोखी राजनीतिक पैंतरेबाजी के बाद चरण सिंह जी देश के 5वें प्रधानमंत्री बन गए। यह कांग्रेस के बाहरी समर्थन से हुआ, लेकिन यहां एक दिलचस्प तथ्य यह है कि वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कभी संसद का सामना नहीं किया।
राजनीतिक ड्रामा का प्रतीक
यह पूरा episode 1970s की अस्थिर राजनीति का प्रतीक था, जब power dynamics बड़ी तेजी से बदल रही थे और coalition politics अपने शुरुआती दिन देख रही थी।
1977 में जनता पार्टी की जीत के साथ बाबू जगजीवन राम भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री बने। चौधरी चरण सिंह के साथ dual deputy PM system का यह अनोखा प्रयोग था।
कांग्रेस छोड़कर इतिहास बदला जगजीवन राम का सबसे बड़ा राजनीतिक दांव था 1977 में कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में जाना। इस फैसले ने Emergency के खिलाफ विपक्ष को मजबूत किया और इंदिरा गांधी की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दलित अधिकारों के प्रबल समर्थक 35 सालों तक कांग्रेस में रहकर दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले बाबू जी ने साबित किया कि राजनीति में सिद्धांत से बड़ी कोई चीज नहीं। उनका उप-प्रधानमंत्री बनना दलित राजनीति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
Defense Minister के रूप में उपलब्धि राक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने 1971 की जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, लेकिन उप-प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल राजनीतिक अस्थिरता के कारण अधूरा रह गया।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से दिल्ली तक पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे चव्हाण साहब ने राज्य की राजनीति से national politics में सफल transition किया। उन्होंने सिद्ध किया कि regional leadership भी national level पर प्रभावी हो सकती है।
Congress Split का साक्षी 1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय चव्हाण साहब एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी थे। यद्यपि वे इंदिरा गांधी के साथ रहे, लेकिन पार्टी के भीतर के tensions उनके कार्यकाल को प्रभावित करते रहे।
Progressive Leader की छवि उनका व्यक्तित्व एक progressive और forward-thinking नेता का था जो economic development और social justice के बीच balance बनाने में विश्वास करते थे।
Jat Politics के सरताज हरियाणा में जाट राजनीति के इस दिग्गज ने अपनी सादगी और मिट्टी से जुड़ाव के कारण जनता में अपार लोकप्रियता हासिल की। उनका "ताऊ जी" का नाम उनके जमीनी कनेक्शन का प्रतीक था।
V.P. Singh सरकार में किरदार 1989-1991 के दौरान Deputy PM के रूप में उन्होंने किसान हितों की आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि यह सरकार भी अधिक दिन नहीं चली, लेकिन देवी लाल की छाप राजनीति पर गहरी पड़ी।
Family Politics का प्रारंभ देवी लाल ने हरियाणा में एक राजनीतिक dynasty की नींव रखी। उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी आगे चलकर हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, जो family politics के बढ़ते trend का हिस्सा था।
Ram Janmabhoomi आंदोलन के नायक आडवाणी जी का नाम राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ा है। उनकी famous राम रथ यात्रा ने भारतीय राजनीति की direction ही बदल दी और BJP को national party बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
Home Minister से Deputy PM गृह मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल बेहद प्रभावी रहा। National security और internal affairs में उनकी expertise को देखते हुए वाजपेयी जी ने उन्हें उप-प्रधानमंत्री का दायित्व सौंपा।
Modi Era से पहले का BJP आडवाणी जी का समय Modi era से पहले की BJP का प्रतिनिधित्व करता था, जब party में collective leadership का model था। उनकी political acumen और organizational skills ने BJP को एक मजबूत opposition से ruling party बनाने में अहम भूमिका निभाई।
Legacy और प्रभाव उनका Deputy PM का कार्यकाल छोटा था, लेकिन भारतीय राजनीति पर उनका प्रभाव दीर्घकालिक रहा। आज भी उन्हें BJP के architect के रूप में याद किया जाता है।
लालकृष्ण आडवाणी भारत के सातवें और अंतिम उप प्रधानमंत्री हुए। उप प्रधानमंत्री रूप में उनका यह कार्यकाल 29 जून, 2002 से 22 मई, 2004 तक रहा था। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, तब आडवाणी ने गृह मंत्री व उप-प्रधानमंत्री (Deputy Prime Minister) का दायित्व संभाला था। लालकृष्ण आडवाणी का जन्म कराची, वर्तमान पाकिस्तान में, माता-पिता किशनचंद और ज्ञानीदेवी आडवाणी के घर हुआ था। लालकृष्ण आडवाणी को वर्ष 2024 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
आज के समय में कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि भारत में उप-प्रधानमंत्री क्यों नहीं है। दरअसल, यह कोई जरूरी पद नहीं है और इसे भरना या न भरना पूरी तरह प्रधानमंत्री की इच्छा पर निर्भर करता है।
मोदी सरकार की रणनीति: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 और 2019 दोनों बार अपनी सरकार में किसी को भी उप-प्रधानमंत्री नहीं बनाया। उनकी सोच यह है कि वे खुद सभी महत्वपूर्ण फैसलों की जिम्मेदारी लेना चाहते हैं और टीम वर्क के जरिए काम करना पसंद करते हैं।
राजनीतिक कारण:
क्या भविष्य में बन सकता है? राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भाजपा को किसी बड़े सहयोगी दल के साथ गठबंधन करना पड़े, तब संभव है कि उप-प्रधानमंत्री का पद फिर से बनाया जाए। लेकिन जब तक भाजपा का पूर्ण बहुमत है, तब तक यह पद खाली रहने की संभावना है।
अंतर्राष्ट्रीय तुलना: दुनिया के कई देशों में भी उप-प्रधानमंत्री का पद नहीं होता। अमेरिका में उप-राष्ट्रपति है लेकिन ब्रिटेन में कोई उप-प्रधानमंत्री नहीं है। इससे पता चलता है कि यह पद जरूरी नहीं है।