सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) के विशेष सघन वोटर लिस्ट पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision - SIR) पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने एक बेहद अहम सुझाव देते हुए चुनाव आयोग से कहा है कि वह वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने या उसमें सुधार के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे विभिन्न दस्तावेजों को स्वीकार करने पर विचार करे।
आज (गुरुवार, 10 जुलाई 2025) आए इस फैसले से उन राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों को झटका लगा है, जो इस अभियान पर तुरंत रोक लगाने की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह चुनाव आयोग के अभियान को रोकेगा नहीं, क्योंकि वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण एक सतत प्रक्रिया है। लेकिन, कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इस प्रक्रिया के दौरान कोई भी योग्य मतदाता अपने मताधिकार से वंचित न हो। कोर्ट का यह सुझाव उन चिंताओं को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जहाँ बहुत से लोगों के पास मांगे गए सभी विशिष्ट दस्तावेज नहीं होते हैं।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग के इस SIR अभियान को लेकर देश के कई हिस्सों, खासकर बिहार में, भारी विरोध प्रदर्शन हुए हैं। महागठबंधन जैसे राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया था कि यह अभियान लाखों गरीब और प्रवासी मतदाताओं को वोटर लिस्ट से हटाने की एक साजिश है, क्योंकि उनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज नहीं होते। हाल ही में, बिहार में इसी मुद्दे पर महागठबंधन ने बिहार बंद का भी आह्वान किया था, जिसमें वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया का पुरजोर विरोध किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का यह सुझाव अब चुनाव आयोग के लिए एक महत्वपूर्ण गाइडलाइन की तरह काम कर सकता है। अगर चुनाव आयोग इस सुझाव को अपनाता है और आधार, राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को स्वीकार करता है, तो यह वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया को अधिक समावेशी और आसान बना सकता है। इससे वंचित वर्गों के लोगों को अपने मताधिकार से वंचित होने का डर कम होगा। अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग पर टिकी हैं कि वह इस सुझाव को कितनी गंभीरता से लेता है और इसे कैसे लागू करता है।∎