माधव सदाशिव गोलवलकर - M. S. Golwalkar

June 05, 2025
माधव सदाशिव गोलवलकर - M. S. Golwalkar

राष्ट्रस्वयं सेवकसंघ के द्वितीय सरसंघचालक तथा विचारक थे, अपने अनुयायियों के बीच वे 'गुरुजी' नाम से प्रख्यात थे।  हिन्दुत्व की विचारधारा का प्रवर्तन करने वालों में उनका नाम प्रमुख है। वे संघ के कुछ आरम्भिक नेताओं में से एक हैं।

माधव सदाशिव गोलवलकर जीवन परिचय - M. S. Golwalkar Biography

जन्म 19 फ़रवरी 1906
जन्म स्थान रामटेक, महाराष्ट्र, भारत
पेशा रा स्व सं के भूतपूर्व सरसंघचालक
माता-पिता कल्यानचंद,  तृप्ता देवी
मृत्यु 5 जून 1973

जीवन - Life

उनका जन्म 1096 में महाराष्ट्र में हुआ था, उनका बचपन में नाम माधव रखा गया पर परिवार में वे मधु के नाम से ही पुकारे जाते थे। पिता सदाशिव राव प्रारम्भ में डाक-तार विभाग में कार्यरत थे परन्तु बाद में उनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग में 1908 में अध्यापक पद पर हो गयी।

मधू की शिक्षा 2 वर्ष की आयु में शुरू हुई थी, पिताश्री भाऊजी जो भी उन्हें पढ़ाते थे उसे वे सहज ही इसे कंठस्थ कर लेते थे। सन् 1919 में उन्होंने 'हाई स्कूल की प्रवेश परीक्षा' में विशेष योग्यता दिखाकर छात्रवृत्ति प्राप्त की। सन् 1922 में 16 वर्ष की आयु में माधव ने मैट्रिक की परीक्षा चाँदा के 'जुबली हाई स्कूल' से उत्तीर्ण की। पढ़ाई के अलावा वे कई खेलों में भी उत्सुक व निपुण थे, खेल जैसे हॉकी, टेनिस और भी कई स्थानीय खेल वे खेला करते थे। इसके इतर विद्यार्थी जीवन में उन्होंने बाँसुरी बजाना, सितार वादन में वे प्रवीण हुए।

1924 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश के साथ हुआ। सन् 1926 में उन्होंने बी.एससी. और 1928 में एम.एससी. की परीक्षायें भी प्राणिविज्ञान विषय में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण की। इस तरह उनका विद्यार्थी जीवन अत्यन्त यशस्वी रहा।

नागपूर आकार उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में निदर्शक के पद पर कार्य करने का मौका मिल। अध्यापक के नाते माधव राव अपनी विलक्षण प्रतिभा और योग्यता से छात्रों में इतने अधिक अत्यन्त लोकप्रिय हो गये कि उनके छात्र उनको गुरुजी के नाम से सम्बोधित करने लगे। इसी नाम से वे आगे चलकर जीवन भर जाने गये। माधव राव यद्यपि विज्ञान के परास्नातक थे, फिर भी आवश्यकता पड़ने पर अपने छात्रों तथा मित्रों को अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, गणित तथा दर्शन जैसे अन्य विषय भी पढ़ाने को सदैव तत्पर रहते थे। यदि उन्हें पुस्तकालय में पुस्तकें नहीं मिलती थीं, तो वे उन्हें खरीद कर और पढ़कर जिज्ञासी छात्रों एवं मित्रों की सहायता करते रहते थे। उनके वेतन का बहुतांश अपने होनहार छात्र-मित्रों की फीस भर देने अथवा उनकी पुस्तकें खरीद देने में ही व्यय हो जाया करता था।

राष्ट्रस्वयं सेवकसंघ - RSS

सबसे पहले ""डॉ॰ हेडगेवार"" के द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भेजे गए नागपुर के स्वयंसेवक भैयाजी दाणी के द्वारा श्री गुरूजी संघ के सम्पर्क में आये और उस शाखा के संघचालक भी बने। 1937 में वो नागपुर वापस आ गए।

नागपुर में श्री गुरूजी के जीवन में एक दम नए मोड़ का आरम्भ हो गया। "डॉ हेडगेवार" के सानिध्य में उन्होंने एक अत्यन्त प्रेरणादायक राष्ट्र समर्पित व्यक्तित्व को देखा। किसी आप्त व्यक्ति के द्वारा इस विषय पर पूछने पर उन्होंने कहा-

"मेरा रुझान राष्ट्र संगठन कार्य की और प्रारम्भ से है। यह कार्य संघ में रहकर अधिक परिणामकारिता से मैं कर सकूँगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इसलिए मैंने संघ-कार्य में ही स्वयं को समर्पित कर दिया। मुझे लगता है स्वामी विवेकानन्द के तत्वज्ञान और कार्यपद्धति से मेरा यह आचरण सर्वथा सुसंगत है।"

भारत छोड़ो आंदोलन

9 अगस्त 1942 को बिना शक्ति के ही कांग्रेस ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन छेड़ दिया। देश भर में बड़ा आंदोलन शुरू तो हो गया, परन्तु असंगठित दिशाहीन होने से सत्ताधारियों ने बड़ी क्रूरता से दमन नीतियाँ अपनाई। गुरूजी ने निर्णय किया था की संघ प्रत्यक्ष रूप से तो आंदोलन में भाग नहीं लेगा किन्तु स्वयंसेवकों को व्यक्तिशः प्रेरित किया जाएगा।

जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में योगदान

सरदार पटेल जी ने जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय करने के की बात रजा हरी सिंह जी से की तब उस समय जम्मू के महाजन मेहरचन्द महाजन ने श्री गुरुजी को संदेश भेज की वे कश्मीर नरेश को इस विलय के लिए तैयार करें।

श्रीगुरुजी ने समझाया - आप हिन्दू राजा हैं। पाकिस्तान में विलय करने से आपको और आपकी हिन्दू प्रजा को भीषण संकटों से संघर्ष करना होगा। यह ठीक है कि अभी हिन्दुस्थान से रेल के रास्ते और हवाई मार्ग का कोई सम्पर्क नहीं है, किन्तु इन सबका प्रबन्ध शीघ्र ही हो जायेगा। आपका और जम्मू-कश्मीर रियासत का भला इसी में है कि आप हिन्दुस्थान के साथ विलीनीकरण कर लें।

श्री मेहरचन्द महाजन ने कश्मीर-नरेश से कहा : गुरुजी ठीक कह रहे हैं। आपको हिन्दुस्थान के साथ रियासत का विलय करना चाहिए। अन्ततः कश्मीर-नरेश ने श्रीगुरुजी को तूस की शाल भेंट की। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर के भारत-विलय में श्रीगुरुजी का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा।

राष्ट्रस्वयं सेवकसंघ

30 जनवरी 1948 को गांधी हत्या के मिथ्या आरोप में 4 फरवरी को संघ पर प्रतिबन्ध लगाया गया। श्री गुरूजी को गिरफ्तार किया गया। देश भर में स्वयंसेवको की गिरफ्तारियां हुई। जेल में रहते हुवे उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं का विस्तृत व्यक्तव्य भेजा जिसमे सरकार को मुहतोड़ जवाब दिया गया था।

26 फरवरी 1948 को देश के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू को गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल ने अपने पत्र में लिखा था "गांधी हत्या के काण्ड में मैंने स्वयं अपना ध्यान लगाकर पूरी जानकारी प्राप्त की है। उस से जुड़े हुवे सभी अपराधी लोग पकड़ में आ गए हैं। उनमें एक भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नहीं है।"

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक - Rashtriya Swayamsevak Sangh Sarsanghchalak कार्यकाल - Tenure
केशव बलिराम हेडगेवार – Keshav Baliram Hedgewar 1925 – 1940
माधव सदाशिवराव गोलवलकर – Madhav Sadashivrao Golwalkar 1940 – 1973
मधुकर दत्तात्रय देवरस – Madhukar Dattatreya Devras 1973 – 1993
प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह – Professor Rajendra Singh 1993 – 2000
कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन – Kripahalli Sitaramaiya Sudarshan 2000 – 2009
डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत – Dr. Mohanrao Madhukarrao Bhagwat 2009 – अभी तक
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