अहिल्याबाई होल्कर: एक प्रेरणादायी शासिका और धर्मपरायण रानी
भारत के इतिहास में अनेक वीरांगनाओं ने अपने अद्भुत कार्यों और नेतृत्व से समाज में अमिट छाप छोड़ी है। इन्हीं महान महिलाओं में से एक थीं अहिल्याबाई होल्कर, जिन्होंने न केवल मालवा राज्य की कुशलतापूर्वक बागडोर संभाली, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम माणकोजी शिंदे था, जो एक सामान्य किसान थे। अहिल्याबाई को बचपन से ही धार्मिक शिक्षा और न्यायप्रियता की भावना मिली थी। उस समय की सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध, उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत व धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया।
अहिल्याबाई का विवाह मालवा के होल्कर वंश के शासक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव होल्कर से हुआ। यह विवाह उनके जीवन का नया अध्याय बना। दुर्भाग्यवश, खंडेराव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए और बाद में मल्हारराव की भी मृत्यु हो गई। इन दुखद घटनाओं के बाद अहिल्याबाई ने आत्महत्या करने का निश्चय किया, लेकिन राज्य के वरिष्ठों और प्रजा के आग्रह पर उन्होंने शासन संभालने का निर्णय लिया।
1767 ई. में अहिल्याबाई ने मालवा राज्य की बागडोर संभाली। उनका शासन न्याय, धर्म और कल्याण पर आधारित था। उन्होंने अपने शासन में भ्रष्टाचार और अत्याचार को समाप्त किया और किसानों, व्यापारियों और सामान्य जनता को सुरक्षा और सम्मान प्रदान किया।
उन्होंने एक कुशल प्रशासन स्थापित किया, जहाँ प्रजा की समस्याओं का तुरंत समाधान किया जाता था। उन्होंने न्यायप्रियता, कर प्रणाली की पारदर्शिता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया।
अहिल्याबाई होल्कर ने भारत के अनेक तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। उन्होंने काशी (वाराणसी) के काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, रामेश्वरम और अयोध्या में भी धार्मिक कार्यों में योगदान दिया। उन्होंने यात्रियों के लिए धर्मशालाएँ, कुएं, घाट, मंदिर और प्याऊ बनवाए।
उनका ध्यान केवल मालवा तक सीमित नहीं रहा, उन्होंने सम्पूर्ण भारत में धर्म और संस्कृति के विकास में योगदान दिया।
अहिल्याबाई होल्कर अपने समय की एक आदर्श महिला थीं। उन्होंने यह साबित किया कि महिलाएं न केवल परिवार को, बल्कि एक राज्य को भी कुशलतापूर्वक चला सकती हैं। उन्होंने परंपराओं से हटकर स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा की और विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार भी दिलाया।
अहिल्याबाई का निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ। उनके बाद उनके पोते तुकोजीराव होल्कर ने शासन संभाला। आज भी लोग अहिल्याबाई को श्रद्धा, भक्ति और न्याय की प्रतिमूर्ति के रूप में याद करते हैं।
अहिल्याबाई होल्कर का जीवन नारी सशक्तिकरण, कुशल शासन और धार्मिक सेवा का अनुपम उदाहरण है। उनकी नीतियाँ, निर्णय और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। वह इतिहास की एक ऐसी चमकती हुई ज्योति हैं, जिन्होंने अपने सत्कार्यों से सम्पूर्ण भारत को आलोकित किया।