दारा शिकोह - Dara Shikoh

Harsh
March 20, 2025
दारा शिकोह - Dara Shikoh

दारा शिकोह मुमताज़ महल और सम्राट शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र तथा औरंगज़ेब का बड़ा भाई थे।

दारा शिकोह जीवनी - Dara Shikoh Biography

जन्म20 मार्च 1615
माता-पितापिता - शाहजहां
माता - मुमताज महल
जीवनसंगीनादिरा बानू बेगम
संतानसंतान, सुलेमान शिकोह, मुमताज शिकोह, सिपिर शिकोह, जहांजेब बानू बेगम
मृत्यु30 अगस्त 1659

जीवनी - Life

दारा को 1633 में युवराज बनाया गया और उसे उच्च मंसब प्रदान किया गया। 1645 में इलाहाबाद, 1647 में लाहौर और 1649 में वह गुजरात का शासक बना। 1653 में कंधार में हुई पराजय से इसकी प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचा। फिर भी शाहजहाँ इसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखता था, जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था। शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर औरंगजेब और मुराद ने दारा के काफ़ि़र (धर्मद्रोही) होने का नारा लगाया।

सूफीवाद और तौहीद के जिज्ञासु दारा ने सभी सनातन और मुसलमान संतों से सदैव संपर्क रखा। ऐसे कई चित्र उपलब्ध हैं जिनमें दारा को हिंदू संन्यासियों और मुसलमान संतों के संपर्क में दिखाया गया है। दारा काफी प्रतिभाशाली लेखक भी था। सफ़ीनात अल औलिया और सकीनात अल औलिया उसकी सूफी संतों के जीवनचरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं। रिसाला ए हकनुमा (1646) और "तारीकात ए हकीकत" में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन है। "अक्सीर ए आज़म" नामक उसके कवितासंग्रह से उसकी सर्वेश्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है।

लेकिन कुछ समय बाद राजनीतिक परिस्थितियों वश दारा में नास्तिकवाद की ओर रुचि हुई, हालांकि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। बाल्यकाल से ही उसमें अध्यात्म के प्रति लगाव था। यद्यपि कुछ कट्टरपंथी मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, तथापि दारा ने इस्लाम की मुख्य भूमि को नहीं छोड़ा। उसे धर्मद्रोही करार दिए जाने का मुख्य कारण उसकी सर्व-धर्म-सम्मिश्रण की प्रवृत्ति थी जिससे धर्मगुरुओं को इस्लाम की स्थिति के क्षीण होने का भय था।

2017 में दिल्ली की 'डलहौजी रोड' का नाम बदलकर दारा शिकोह मार्ग कर दिया गया है।

अन्य व्यक्तित्व

Eng