सुशील कुमार भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित पहलवानों में से एक हैं। वे ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान हैं जिन्होंने भारत को अंतरराष्ट्रीय कुश्ती मंच पर गौरव दिलाया। उनका संघर्ष, मेहनत और समर्पण युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
सुशील कुमार का जन्म 26 मई 1983 को दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में हुआ था। उनके पिता दीवान सिंह डीटीसी में ड्राइवर थे और कुश्ती से जुड़े हुए थे। बचपन से ही सुशील ने कुश्ती में रुचि दिखाई और 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने छत्रसाल स्टेडियम से कुश्ती की औपचारिक ट्रेनिंग शुरू की। उनके कोच सतपाल सिंह रहे, जो खुद एक प्रसिद्ध पहलवान थे।
सुशील कुमार ने 2003 में राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। लेकिन उन्हें असली प्रसिद्धि 2008 के बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद मिली। इसके बाद 2012 के लंदन ओलंपिक में उन्होंने रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। सुशील ओलंपिक में दो पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान हैं।
इसके अलावा उन्होंने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप (2010) में भी स्वर्ण पदक जीता और कई बार राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया।
सुशील कुमार को उनकी उपलब्धियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है:
हाल के वर्षों में सुशील कुमार का नाम कुछ विवादों में भी आया, जिनमें सबसे प्रमुख 2021 में पहलवान सागर धनखड़ की हत्या का मामला है। इसने उनके करियर और छवि पर गहरा असर डाला। हालांकि मामला अभी न्याय प्रक्रिया में है।
सुशील कुमार का जीवन दो पहलुओं से भरा है — एक तरफ उनकी कुश्ती में बेमिसाल उपलब्धियां हैं, तो दूसरी ओर कुछ व्यक्तिगत विवाद। लेकिन उनकी मेहनत, लगन और देश के लिए किए गए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे भारत के उन खिलाड़ियों में से हैं जिन्होंने कुश्ती को एक नई पहचान दी।