बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर आज आखरी चरण है, जहां 6,11 को पहले और दूसरे चरण की वोटिंग क्रमशः खत्म हुई और 14 तारीख को एनडीए ने भारी बहुमत से सरकार बनाई। इस पूरी चुनाव प्रक्रिया का समापन तो हुआ, लेकिन प्रश्न ये बना की सीएम की कुर्सी पर कौन बैठेगा? बीजेपी का कोई लीडर या नीतीश कुमार ही एक बार फिर बिहार को संभालेंगे?
बहरहाल आज यानी 20 नवंबर को बिहार में सीएम एवं विधायक शपथ ग्रहण समारोह है, जिसमें नीतीश कुमार सीएम पद की शपथ ले रहे हैं। आपको बता दें कि इस चुनाव में बीजेपी और एनडीए को 89 और 85 क्रमशः सीटें मिली हैं। लेकिन
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इसी प्रचंड बहुमत में नीतीश कुमार के लिए कई मुश्किलें भी छिपी हो सकती हैं। बिहार के वोटरों ने जिन वादों के आधार पर नीतीश पर भरोसा जताया है, जनता की उम्मीदें उन वादों को लेकर होगी।
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माना जा रहा है कि, नीतीश कुमार का यह आखिरी चुनाव हो सकता है, नीतीश कुमार 74 वर्ष के हैं, ऐसा माना जा रहा है कि इस बार नीतीश कुमार को वोट उनकी आखिरी चुनाव के सम्मान में मिली है।
इस पर नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों पर ही उनके वादों की फेहरिस्त का बोझ रहेगा, लेकिन अगर नीतीश कुमार का ये आखिरी चुनाव था, तो ज्यादा दबाव बीजेपी पर होगा।
उनके वादों में ख़ासकर नौकरी, रोज़गार, उद्योग, पेंशन, मुफ़्त बिजली जैसे कई वादे हैं, जिन्हें पूरा करना और बनाए रखना बिहार जैसे आर्थिक तौर पर कमज़ोर राज्य से लिए आसान नहीं होगा।
नीतीश कुमार ने अब प्रेस से बात करना न के बराबर कर दिया है, इसका कारण भी उनकी सेहत और उम्र को ही बताया जा रहा है।
बिहार ही एकमात्र ऐसा हिन्दी भाषी राज्य है जहां बीजेपी अपनी सरकार का मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है। इस बार भी सबसे बड़ी पार्टी होकर बीजेपी नीतीश कुमार के सहयोगी की भूमिका में है।
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण का कहना है, , "नीतीश कुमार के सामने वादों की एक लंबी सूची है। जिस तरह से बीते कुछ समय में बिहार का ख़ज़ाना अलग-अलग योजनाओं के लिए खोल दिया गया, जिसमें 1.5 करोड़ महिलाओं को दस हज़ार रुपये देना शामिल है। यह बड़ी परेशानी बन सकता है।"
"जैसे महाराष्ट्र में 'लाडली बहन योजना' में बदलाव किया गया वैसे हो सकता है बिहार में नीतीश सरकार अपनी योजनाओं में बदलाव कर दें. 125 यूनिट मुफ़्त बिजली जैसी योजना चला पाना आसान नहीं होगा. हम सब जानते हैं कि बिहार की वित्तीय स्थिति क्या है. उसके बाद राजस्व जुटाने का कोई नया ज़रिया भी नहीं है."
वरिष्ठ पत्रकार नीरज चौधरी का कहना है,
"मेरा मानना है कि जनता की उम्मीदें नीतीश कुमार से ज़्यादा बीजेपी से होंगी। जनता जानती थी कि यह नीतीश का अंतिम चुनाव है, इसलिए उन्हें जनता ने एक तरह से सम्मान और विदाई में वोट दिया है।"
दूसरी और बीजेपी ने जिस राज को जंगलराज कहकर तेजस्वी, राबड़ी, और लालू को पीछे धकेला है, ये कहते हुए कि क़ानून व्यवस्था के हालात बहुत ख़राब थे।
नीरजा चौधरी कहती हैं, "बीजेपी जिसे 'जंगलराज' कहती है, इन चुनावों में आरजेडी को उसकी वजह से बहुत नुक़सान हुआ है। बीजेपी ने जिस तरह से इसे मुद्दा बनाया तो लोगों को लगा कि बिहार में कहीं फिर से अपराध का वही दौर वापस न आ जाए।"
हालांकि बीजेपी और नीतीश की विचार धारा में फ़र्क है, लेकिन नीतीश कुमार हिन्दुत्व की राजनीति को लेकर अब बहुत आक्रामक नहीं रहते हैं।
बिहार में पलायन नीतीश सरकार में पिछली सरकार के मुकाबले अधिक हुआ।
मुख्य सवाल ये भी है अगर पिछली सरकार का कार्यकाल जंगलराज था तो पिछले 20 वर्षों में नीतीश कुमार ने क्या किया? बिहार के आर्थिक संकट को भी दूर किया? दूसरी और रोज़गार की तलाश में राज्य से लोगों का पलायन एक बड़ी समस्या है। बिहार में कई इलाक़ों में तो आबादी के लिहाज से बहुत कम युवा लोग दिखाई देते हैं, क्योंकि रोज़ी-रोटी के लिए लोग कहीं और पलायन कर चुके हैं।
70-80 के दशक में बिहार में उद्योग चल रहे हैं, तब भी सरकार कुछ प्रतिशत बंद पड़े उद्योग पर विपक्ष सवाल उठती थी, राज्य के कई शहर औद्योगिक शहर की तरह देखे जाते थे। इनमें फतुहा, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहटा, डालमियानगर, डुमराँव वगैरह शामिल हैं. बिहार के शुगर मिल उस वक़्त तक काम कर रहे थे।
अगर टाइम्स ऑफ इंडिया (अँग्रेज़ी) की माने तो बिहार में वर्ष 1981 में केवल 10-15 प्रतिशत ही प्रवासी मजदूर थे। लेकिन 2017-18 में आँकड़े 65% तक आ गए हैं।