भारत के राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता के रूप में पिंगली वेंकैया का नाम हमेशा से आदर के साथ लिया जाता है। पिंगली वेंकैया न केवल ऐतिहासिक ध्वज के निर्माता थे, बल्कि अपने जीवन में उन्होंने एक शिक्षक, लेखक, कृषक और भाषाविद् के रूप में भी काम किया। हालाँकि, उनका जीवन कभी आसान नहीं रहा। इस सच्चे देशभक्त ने अपनी प्रतिष्ठा का अनुचित लाभ कभी नहीं लिया। अंतिम समय तक संघर्षमय जीवन जीते हुए ही निधन हो गया।
नाम | पिंगली वेंकैया |
अन्य नाम | डायमंड वेंकैया |
जन्म | 2 अगस्त 1876/1878 |
जन्म स्थान | भटलापेनुमरु, मछलीपत्तनम, मद्रास प्रान्त (ब्रिटिश भारत) |
पिता | हनुमंत रायुडू |
माता | वेंकट रत्नम |
पेशा | ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा, कॉलेज लेक्चरर(1911-1944) |
शिक्षा | मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज से भूविज्ञान में डिप्लोमा |
प्रमुख कार्य | भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता |
पत्नी | रुक्मिनम्मा |
मृत्यु | 4 जुलाई 1963 |
पिंगली वेंकैया भारत के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में मदद की थी। वह वास्तव में होशियार थे और तेलुगु, हिंदी, उर्दू, बंगाली, तमिल और अंग्रेजी जैसी कई भाषाएँ जानते थे। उन्होंने पृथ्वी के बारे में और हाथ से कपड़ा बनाने के बारे में भी सीखा। वह चाहते थे कि लोग अपने कपड़े खुद बनाएं ताकि वे अधिक स्वतंत्र हो सकें।
उन्होंने भारत और जापान तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अन्य देशों में कई स्थानों की यात्रा की। पिंगली वेंकैया महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित थे और भारतीय स्वतंत्रता के लिए अहिंसक आंदोलन के अनुयायी बन गए। पिंगली वेंकैया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए विभिन्न अभियानों और आंदोलनों में भाग लिया था। पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya in Hindi) हनुमंत राव और रुक्मिनम्मा के पुत्र थे। उन्होंने मछलीपट्टनम में स्कूल में पढ़ाई की और बाद में श्रीलंका के कोलंबो में अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। उन्होंने स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से भूविज्ञान की डिग्री भी प्राप्त की। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने से पहले उन्होंने एक शिक्षक, भूविज्ञानी और कृषि पर्यवेक्षक के रूप में काम किया।
1921 में, पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya in Hindi) ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक झंडे का डिज़ाइन दिया। वह बीच में चरखे के साथ केसरिया, सफेद और हरे रंग की तीन पट्टियां चाहते थे। चरखा खादी आंदोलन के लिए और भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दिखाने के लिए था। बाद में उन्होंने चरखे को अशोक चक्र में बदल दिया। पिंगली वेंकैया (Pingali Venkayya in Hindi) ने तेलुगु सांख्य विद्या नामक एक कोड प्रणाली भी बनाई। इसमें तेलुगु अक्षरों के लिए संख्याओं का उपयोग किया गया था, ताकि लोग तेलुगु में बात कर सकें, बिना यह जाने कि इसे कैसे लिखा जाता है। इससे लोगों को बेहतर संवाद करने में मदद मिली. पिंगली वेंकैया ने सक्रिय रूप से भाग लिया। नमक सत्याग्रह आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद सरकार ने वेंकैया के योगदान को मान्यता दी। उन्हें 1955 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। अपने बाद के वर्षों में, पिंगली वेंकैया विजयवाड़ा में रहे और खुद को समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने भारतीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की और मद्रास प्रेसीडेंसी की विधान परिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया।
यह वह दौर था, जब पढ़े-लिखे भारतीय युवा ब्रिटिश सेना में भर्ती हुआ करते थे। 19 साल की उम्र में पिंगली, ब्रिटिश आर्मी में सेना नायक बन गए। ब्रिटिश सेना में काम करते हुए दक्षिण अफ्रिका में एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान, पिंगली की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई।
पिंगली, महात्मा गांधी से इतना प्रेरित हुए कि वह उनके साथ ही हमेशा के लिए भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बन गए। देश के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जूनून रखने वाले वेंकैया का हमेशा से मानना था कि भारत का भी अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए।
उन्होंने ही खुद आगे बढ़कर गाँधीजी को देश का खुद का झंडा बनाने की सलाह दी थी, जिसके बाद गांधीजी ने उन्हें ही इसका दायित्व सौंप दिया था। इसके बाद, वेंकैया ने कई देशों के ध्वजों के बारे में जानना शुरू किया।
वह अपने देश के लिए एक ऐसा झंडा बनाना चाहते थे, जो यहां के इतिहास को दर्शाए।
उन्होंने, 1916 से 1921 तक दुनिया भर के झंडों के अध्ययन में अपने आप को समर्पित कर दिया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली, महात्मा गांधी से मिले और उन्हें लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडे का डिज़ाइन दिखाया। उस समय गांधीजी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया।
भारत आने के बाद पिंगली वेंकैया ने खुद को ध्वज निर्माण के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया। परिणामस्वरूप कई तरह के संभावित डिजाइन तैयार किए। जिन्हें स्वतंत्रता का प्रतीक बनाने के लिए, नव-निर्मित स्वराज आंदोलन के लिए झंडों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था। काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में पिंगली वेंकैया ने इस बात पर सबका ध्यान आकर्षित किया। उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया।
पिंगली वेंकैया ने पांच सालों तक विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया। 1921 में ही भारतीय ध्वज का पहला संस्करण अस्तित्व में आया। वेंकैया ने महात्मा गांधी को खादी के झंडे पर ध्वज का एक प्रारंभिक डिज़ाइन दिखाया था। यह पहला ध्वज लाल और हरा रंग का था - लाल रंग हिंदुओं का और हरा रंग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता था। गांधी के सुझाव पर, वेंकैया ने देश में मौजूद अन्य सभी संप्रदायों और धर्मों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सफेद पट्टी जोड़ी।
हालांकि इस ध्वज को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (AICC) द्वारा आधिकारिक रूप से अपनाया नहीं गया था। 1931 में पट्टियों को पुनः व्यवस्थित किया और लाल को नारंगी रंग में बदल दिया गया।
1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।
पिंगली वेंकैया गांधीवादी विचारधारा के अनुसार सादगी से जीवन व्यतीत किया और 1963 में अपेक्षाकृत गरीबी में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी याद में भारत सरकार ने एक डाक टिकट और पहला झंडा 2009 में जारी किया गया था। 2014 में, उनका नाम मरणोपरांत भारत रत्न के लिए प्रस्तावित किया गया था, हालांकि इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।