नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने वरिष्ठ नेता और झारखंड के पूर्व राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित कर एक चौंकाने वाला कदम उठाया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला न केवल रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके जरिए भाजपा ने कई राजनीतिक संदेश भी दिए हैं।
इस फैसले को लेकर राजनीतिक गलियारों में एक आम चर्चा यह भी है कि भाजपा ने इस बार उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन में 'धनखड़ वाली गलती' नहीं दोहराई है। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ एक जाने-माने और मुखर राजनेता थे, जिनका राजनीतिक सफर काफी आक्रामक रहा था। उनका उपराष्ट्रपति बनना विपक्ष के साथ संबंधों में अक्सर तनाव का कारण बनता रहा। इसी के उलट, सी. पी. राधाकृष्णन की उम्मीदवारी को शांत, सुलझे हुए और संस्थागत चरित्र वाले नेता के रूप में देखा जा रहा है।
राधाकृष्णन का चयन एक ही समय में कई राजनीतिक लक्ष्यों को साधने का प्रयास है। सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण संदेश है दक्षिण भारत की राजनीति में पैठ बनाना। तमिलनाडु से आने वाले राधाकृष्णन का चयन, उस राज्य में भाजपा के बढ़ते जनाधार को मजबूत करने की एक सोची-समझी रणनीति है जहाँ पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। यह निर्णय दक्षिण भारत के राज्यों में मतदाताओं को लुभाने के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
दूसरा संदेश पार्टी के प्रति वफादारी का सम्मान है। राधाकृष्णन एक कट्टर और पुराने भाजपा कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने दो बार लोकसभा सांसद के रूप में और झारखंड के राज्यपाल के रूप में भी सेवा की है। उनकी साफ-सुथरी छवि और पार्टी के प्रति दशकों की वफादारी को इस उम्मीदवारी के जरिए पुरस्कृत किया गया है। यह फैसला पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं को भी एक संदेश देता है कि उनकी सेवा और समर्पण को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। तीसरा संदेश संस्थागत सद्भाव का है। एक राज्यपाल के रूप में राधाकृष्णन का अनुभव उपराष्ट्रपति के पद के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद है, जिसमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होता है। इसी अनुभव को देखते हुए माना जा रहा है कि उपराष्ट्रपति के रूप में वह राज्यसभा के सभापति के तौर पर विपक्ष के साथ बेहतर और सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित कर सकेंगे।
सी. पी. राधाकृष्णन के जरिए भाजपा ने एक ऐसा उम्मीदवार चुना है जो न केवल उनके दक्षिणी विस्तार की रणनीति का हिस्सा है, बल्कि उनकी संगठनात्मक एकजुटता और संस्थागत सम्मान की छवि को भी मजबूत करता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी उम्मीदवारी किस तरह से विपक्ष की रणनीति को प्रभावित करती है और क्या भाजपा अपने इन राजनीतिक संदेशों को मतदाताओं तक पहुँचाने में सफल हो पाती है।∎