कंबोडिया और थाईलैंड के बीच संघर्ष: इतिहास, विवाद और ट्रम्प का अप्रत्याशित संबंध

December 13, 2025
cambodia-thailand

हाल ही में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच युद्ध की स्थिति बनी हुई है, इस युद्ध का का वर्तमान ये है की एक प्रीह विहार(Preah Vihear Temple) और इसके आस-पास की सीमा रेखा का विवाद है। विश्व इतिहास में कंबोडिया और थाईलैंड के बीच संघर्ष का इतिहास सदियों पुराना है, लेकिन आधुनिक संदर्भ में यह विवाद सीमांकन और एक प्राचीन मंदिर को लेकर केंद्रित है। डोनाल्ड ट्रम्प का इस विवाद से सीधा या वर्तमान में कोई सैन्य लेना-देना नहीं है, बल्कि उनका संबंध अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता और व्यावसायिक सौदों के माध्यम से जुड़ता है।

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संघर्ष का मूल कार

कंबोडिया में एक मंदिर है 'प्रीह विहार मंदिर' जो लगभग 9वीं-10वीं शताब्दी के बीच बना। इस मंदिर का ही मूल विवाद और संघर्ष है, दरअसल, 1962 में ICJ के फैसले के अनुसार ये मंदिर कंबोडिया का है, लेकिन मंदिर जाने के लिए जो मुख्य सड़क है वो थाईलैंड की है। इसिकरण थाईलैंड मंदिर के नीचे के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार जमाता है।

लेकिन असल समस्या और संघर्ष वर्ष 2008 में शुरू हुआ जब यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी, इसके बाद 2008-2011 तक दोनों देशों के बीच सैन्य झड़प में कई सैनिक और आम जीवन की हत्याएं दर्ज हुई।

इस लड़ाई के 2 वर्ष पश्चात यानि 2013 में, ICJ की ओर से एक अंटीं निर्णय आया, अपने 1962 के फैसले की पुष्टि की और फैसला सुनाया कि मंदिर परिसर के आस-पास का पूरा विवादित क्षेत्र कंबोडिया का है। इस फैसले के बाद, सीमा पर तनाव में कमी आई है, लेकिन विवाद पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है।

ट्रम्प की एंट्री

उनका संबंध इस क्षेत्र में व्यावसायिक हितों और मध्यस्थता के प्रयास से जुड़ा था, खासकर 2013 से पहले।

अगर हम राष्ट्रपति ट्रम्प का इतिहास देखें तो हम पाएंगे कि मध्यस्थता करवाने का जुनून उनमें राष्ट्रपति बनने से पहले से था, वर्ष 2012-13 जब वे राष्ट्रपति नहीं थे तब उन्होंने इन दोनों देशों के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव पेश किया। उनका विचार था कि वह एक व्यावसायिक सौदे (Business Deal) के रूप में इस जटिल क्षेत्रीय समस्या का समाधान कर सकते हैं।

ट्रम्प का प्रस्ताव दोनों देशों की आर्थिक स्थिति में बढ़ोतरी का था, यानी उन्होंने सुझाव दिया कि मंदिर के आसपास एक रिज़ॉर्ट बनाया जाए जिसका व्यव और राजस्व दोनों देशों में बटें। उनके इस प्रस्ताव का उद्देश्य विवाद को सैन्य टकराव से हटाकर आर्थिक सहयोग में बदलना था।

अब चूंकि ट्रम्प उस समय राष्ट्रपति नहीं थे या किसी और अन्य कारण से उनके इस प्रस्ताव पर ज्यादा सोच विचार नहीं किया गया। और 2013 में ICJ ने इस मामले पर अंतिम फैसला सुना दिया। इसलिए, ट्रम्प का इस संघर्ष से संबंध एक अप्रभावी व्यक्तिगत मध्यस्थता प्रयास तक सीमित है, न कि वर्तमान भू-राजनीति से।

अब वर्तमान में, 12 वर्ष पूर्व ICJ द्वारा दिए गए फैसले पर अटल दोनों देशों में संघर्ष काफी हद तक कम है, टुरिज़म शुरू हो चुका है, लेकिन सामान्य नहीं है, दक्षिण पूर्व एशिया में क्षेत्रीय संप्रभुता और सीमाएँ अभी भी संवेदनशील मुद्दे हैं।

लेकिन अब एक बार फिर कंबोडिया और थाईलैंड के सीमा विवाद पर जारी हिंसक झड़पों शुरू हुई है, (जिसमें कम से कम 20 लोगों की मौत हुई है और करीब पाँच लाख विस्थापित हुए हैं) एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हस्तक्षेप किया है।

ट्रम्प ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से फ़ोन पर बातचीत के बाद नए युद्धविराम (Ceasefire) की घोषणा की,उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर एक पोस्ट में दावा किया कि दोनों नेताओं ने "आज (शुक्रवार) शाम से सभी तरह की गोलीबारी रोकने पर सहमति जताई है।" और "मेरे साथ किए गए मूल शांति समझौते पर लौटने का फैसला किया है।"

ट्रम्प के इस पोस्ट के बाद, थाईलेंड के प्रधानमंत्री की ओर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई, आपको बता दें इस कॉन्फ्रेंस में ट्रम्प की बातों की पुष्टि नहीं की गई है, साथ ही उन्होंने युद्ध विराम के लिए कंबोडिया के सामने कड़ी शर्तें रख दी हैं।

  1. कंबोडिया गोलीबारी बंद करे।
  2. कंबोडिया अपने सैनिक हटाए।
  3. कंबोडिया ने जो भी बारूदी सुरंगें (Landmines) बिछाई हैं, उन्हें हटाए।

कंबोडियाई समकक्ष हुन मानेट ने अभी तक ट्रम्प की घोषणा पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है।

यह घटनाक्रम दर्शाता है कि ट्रम्प ने भले ही समझौते का श्रेय लिया हो, लेकिन ज़मीनी स्तर पर थाईलैंड युद्ध रोकने के लिए कंबोडिया से एकतरफा सैन्य वापसी की मांग कर रहा है, जिससे संघर्ष का तुरंत थमना अनिश्चित बना हुआ है।

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