बालकृष्ण भट्ट (1844–1914) हिंदी साहित्य के नवजागरण काल के एक प्रमुख साहित्यकार, पत्रकार और समाज-सुधारक थे। वे हिंदी गद्य लेखन के उन्नायक माने जाते हैं और उनकी रचनाएँ उस समय के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करती हैं। वे आधुनिक हिंदी गद्य को दिशा देने वाले अग्रणी लेखकों में से एक थे।
बालकृष्ण भट्ट का जन्म 3 जून 1844 को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (अब प्रयागराज) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने संस्कृत और फारसी की पारंपरिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में अंग्रेज़ी शिक्षा भी ग्रहण की। शिक्षा के साथ-साथ वे सामाजिक समस्याओं के प्रति भी सजग थे।
बालकृष्ण भट्ट ने हिंदी साहित्य को न केवल नई दिशा दी बल्कि उसे समाज सुधार का माध्यम भी बनाया। वे हिंदी प्रदीप नामक पत्रिका के संपादक रहे, जो उस समय हिंदी नवजागरण का प्रमुख मंच थी। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और पाखंड के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
उनकी भाषा सरल, व्यावहारिक और प्रभावशाली थी। वे संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग करते थे, जिससे हिंदी गद्य को एक सुसंगठित रूप मिला। उन्होंने तर्कपूर्ण लेखन शैली को अपनाया, जिससे उनके विचार पाठकों तक सीधे पहुंचते थे।
बालकृष्ण भट्ट केवल साहित्यकार नहीं थे, वे एक सामाजिक चिंतक भी थे। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह की बुराई, स्त्री शिक्षा जैसे मुद्दों पर विचार व्यक्त किए और सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया।
बालकृष्ण भट्ट का निधन 20 जुलाई 1914 को हुआ। उनका जीवन और कार्य आज भी हिंदी साहित्य और समाज सुधार के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत हैं।
बालकृष्ण भट्ट हिंदी नवजागरण के एक स्तंभ थे। उनका लेखन साहित्यिक उत्कृष्टता के साथ-साथ सामाजिक चेतना का भी परिचायक था। वे उन विरले साहित्यकारों में से एक थे जिन्होंने हिंदी
भाषा को न केवल साहित्यिक गरिमा दी बल्कि उसे जनचेतना का माध्यम भी बनाया।