केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की अफिशल वेबसाईट के अनुसार, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो जो भारत सरकार के कार्मिक, पेंशन एवं लोक शिकायत मंत्रालय के कार्मिक विभाग के अधीन कार्यरत है, भारत की प्रमुख जाँच पुलिस एजेंसी है। यह एक विशिष्ट बल है जो सार्वजनिक जीवन में मूल्यों के संरक्षण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है, जो इंटरपोल के सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।
उनके अनुसार जब भारत में द्वितीय विश्व युद्ध के शुरुआत में, भारत सरकार का युद्ध खर्च अधिक होने लगा, इससे बेईमानी और असामाजिक व्यक्तियों, अधिकारियों और गैर-अधिकारियों दोनों को जनता और सरकार की कीमत पर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामले बढ़ने लगे। तब यह महसूस किया गया कि राज्य सरकारों के तहत जो पुलिस एवं अन्य कानूनी एजेंसी है वे इस समस्या से निपटने में उतनी सक्षम नहीं है और न ही ऐसी स्थिति में हैं। तब 1941 में भारतीय सरकार ने एक कार्यकारी आदेश पारित कर तत्कालीन युद्ध में एक DIG के अधीन एक विशेष पुलिस SPE की स्थापना की। इस विशेष पुलिस को अधिकार था कि सरकार के युद्ध और आपूर्ति विभाग से संबंधित व्यय में रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करे। 1942 के अंत तक आते आते, SPE के कार्य क्षेत्र का विस्तार कर रेलवे के भी सभी भ्रष्टाचार के मामलों को भी इन्हें सौंप दिया गया।
वर्ष 1943 में, जब द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो रहा था, भारत सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर, एक विशेष पुलिस बल के गठन का आदेश दिया, इस पुलिस का कार्य ब्रिटिश भारत में कहीं भी केंद्र सरकार से संबंधित कई अपराधों की जांच करने की शक्तियां इस विशेष पुलिस कॉ डी गई।
चूँकि युद्ध की समाप्ति के बाद भी रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच के लिए एक केंद्रीय सरकारी एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई, इसलिए 1943 में जारी अध्यादेश, जो 30 सितंबर, 1946 को समाप्त हो गया था, को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अध्यादेश, 1946 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। तत्पश्चात, उसी वर्ष दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 अस्तित्व में आया।
अब सीबीआई को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत जांच का अधिकार प्राप्त हुआ। इन अधिकारों में अधिनियम की धारा 2, कहती है, डीएसपीई को केवल केंद्र शासित प्रदेशों में अपराधों की जाँच करने का अधिकार प्रदान करती है। हालाँकि, केंद्र सरकार अधिनियम की धारा 5(1) के तहत रेलवे क्षेत्रों और राज्यों सहित अन्य क्षेत्रों में भी इस अधिकार क्षेत्र का विस्तार कर सकती है, बशर्ते राज्य सरकार अधिनियम की धारा 6 के तहत सहमति दे।
अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, विशेष पुलिस स्थापना केवल उन्हीं मामलों की जाँच करने के लिए अधिकृत है, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया जाता है।
अधिनियम के लागू होने के बाद, विशेष पुलिस विभाग (SPE) का अधीक्षण गृह विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया और इसके कार्यों का विस्तार भारत सरकार के सभी विभागों तक कर दिया गया। विशेष पुलिस विभाग (SPE) का अधिकार क्षेत्र सभी केंद्र शासित प्रदेशों तक बढ़ा दिया गया और अधिनियम में राज्य सरकारों की सहमति से राज्यों तक इसके विस्तार का प्रावधान किया गया। विशेष पुलिस विभाग (SPE) का मुख्यालय दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया और संगठन का प्रभार निदेशक, खुफिया ब्यूरो (IB) के अधीन कर दिया गया। हालाँकि, 1948 में, विशेष पुलिस विभाग (SPE) के पुलिस महानिरीक्षक का पद सृजित किया गया और संगठन का प्रभार उनके अधीन कर दिया गया।
1953 में, आयात और निर्यात नियंत्रण अधिनियम के तहत अपराधों से निपटने के लिए विशेष पुलिस विभाग में एक प्रवर्तन शाखा जोड़ी गई। समय के साथ, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अलावा अन्य कानूनों और आयात और निर्यात नियंत्रण अधिनियम के उल्लंघनों के तहत अधिक से अधिक मामले भी विशेष पुलिस विभाग को सौंपे जाने लगे। वास्तव में, 1963 तक विशेष पुलिस विभाग को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 के तहत अपराधों के अलावा भारतीय दंड संहिता की 91 विभिन्न धाराओं और 16 अन्य केंद्रीय अधिनियमों के तहत अपराधों की जाँच करने का अधिकार प्राप्त हो गया था।
केंद्र सरकार के अधीन एक केंद्रीय पुलिस एजेंसी की आवश्यकता महसूस की जा रही थी जो न केवल रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच कर सके, बल्कि केंद्रीय वित्तीय कानूनों के उल्लंघन, भारत सरकार के विभागों से संबंधित बड़े धोखाधड़ी, सार्वजनिक संयुक्त स्टॉक कंपनियों, पासपोर्ट धोखाधड़ी, समुद्र में अपराध, एयरलाइनों में अपराध और संगठित गिरोहों और पेशेवर अपराधियों द्वारा किए गए गंभीर अपराधों की भी जाँच कर सके। इसलिए, भारत सरकार ने 1 अप्रैल, 1963 के एक प्रस्ताव द्वारा निम्नलिखित प्रभागों के साथ केंद्रीय जाँच ब्यूरो की स्थापना की:
