भारतीय फिल्म उद्योग का 'पितामह', फिल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक का जन्म त्रयंबक, बॉम्बे प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश भारत में हुआ।
| विषय | जानकारी |
|---|---|
| जन्म | 30 अप्रैल 1870, त्र्यंबकेश्वर, महाराष्ट्र |
| पेशा | फिल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक |
| माता-पिता | द्वारकानाथ फाल्के (पिता) |
| संतान | नाम उपलब्ध नहीं |
| पुरस्कार | दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (उनके सम्मान में स्थापित) |
| मृत्यु | 16 फरवरी 1944, नासिक, महाराष्ट्र |
दादासाहब फालके का पूरा नाम धुंडीराज गोविन्द फालके है और इनका जन्म महाराष्ट्र में 30 अप्रैल 1870 को हुआ। इनके पिता संस्कृत के प्रकांड पंडित थे और मुम्बई के एलफिंस्तन कॉलेज में प्राध्यापक थे। इसलिए दादासाहब की शिक्षा-दीक्षा मुम्बई में ही हुई। २५ दिसम्बर १८९१ की बात है, मुम्बई में 'अमेरिका-इंडिया थिएटर' में एक विदेशी मूक चलचित्र "लाइफ ऑफ क्राइस्ट" दिखाया जा रहा था और दादासाहब भी यह चलचित्र देख रहे थे।
इसके बाद फिल्मों को लेकर उनकी ललक और बढ़ी फिर उन्होंने पत्र पत्रिकाओं पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया, कैमरा लेकर चित्र खींचना भी शुरू किया। उन्होने दादर में अपना स्टूडियो बनाया और फालके फिल्म के नाम से अपनी संस्था स्थापित की।
दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता और शौकिया जादूगर थे। दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे, शौकिया जादूगर थे। कला भवन बड़ौदा से फोटोग्राफी का एक पाठ्यक्रम भी किया था।
उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’ पर बनी एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही फालके ने निर्णय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना है। इसके बाद वे भारत में प्रथम बार उन्होंने चलचित्र बनाया। व्यक्ति हुए जिसने भारत के उस समय में यह असंभव प्रतीत होने वाला कार्य किया।
उन्होंने 5 पौंड में एक सस्ता कैमरा खरीदा और शहर के सभी सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का अध्ययन और विश्लेषण किया। फिर दिन में 20 घंटे लगकर प्रयोग किये। ऐसे उन्माद से काम करने का प्रभाव उनकी सेहत पर पड़ा। उनकी एक आंख जाती रही। इस पूरे समय में उनकी पत्नी सरस्वती बाई ने उनका साथ दिया। सामाजिक विरोध के बावजूद भी उन्होंने अपने जेवर गिरवी रख दिये। (40 साल बाद यही काम सत्यजित राय की पत्नी ने उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ बनाने के लिए किया) इस समय में उनके अपने मित्र ही उनके आलोचक हुए, अतः अपनी कार्यकुशलता को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बाल्टी में मटर उगाए और एक साधारण से कैमरा से एक समय में एक फ्रेम लिया।इसके लिए उन्होंने टाइमैप्स फोटोग्राफी की तकनीक इस्तेमाल की।
फरवरी 1912 में वे एक क्रैश-कोर्स करने के लिए इंग्लैंड गए और वहाँ कुछ दिन तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन काम सीखा। कैबाउर्न ने विलियमसन कैमरा, एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल का चुनाव करने में मदद की। इन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ बनायी। चूंकि उस दौर में उनके सामने कोई और मानक नहीं थे, अतः सब कामचलाऊ व्यवस्था उन्हें स्वयं करनी पड़ी। अभिनय करना सिखाना पड़ा, दृश्य लिखने पड़े, फोटोग्राफी करनी पड़ी और फिल्म प्रोजेक्शन के काम भी करने पड़े। महिला कलाकार उपलब्ध न होने के कारण उनकी सभी नायिकाएं पुरुष कलाकार थे (वेश्या चरित्र को छोड़कर)। इस फिल्म की शुरुआती शूटिंग दादर में हुई थी। बहुत मेहनत मशक्कत के बाद 3700 फीट लंबी यह फिल्म बनी जो 21 अप्रैल 1913 को ओलम्पिया सिनेमा हॉल में यह रिलीज की गई। इस फिल्म की तारीफ पश्चिम और तात्कालिक प्रेस ने भी की। इस चलचित्र प्रभु ईसामसीह के स्थान पर कृष्ण, राम, समर्थ गुरु रामदास, शिवाजी, संत तुकाराम इत्यादि महान विभूतियाँ दिखाई दे रही थीं।
| राजा हरिश्चंद्र(1913) |
| मोहिनी भास्मासुर (1913) |
| सत्यवान सावित्री (1914) |
| लंका दहन (1917) |
| श्री कृष्ण जन्म (1918) |
| कलिया मर्दन (1919) |
| बुद्धदेव (1923) |
| बालाजी निम्बारकर (1926) |
| भक्त प्रहलाद (1926) |
| भक्त सुदामा (1927) |
| रूक्मिणी हरण (1927) |
| रुक्मांगदा मोहिनी (1927) |
| द्रौपदी वस्त्रहरण (1927) |
| हनुमान जन्म (1927) |
| नल दमयंती (1927) |
| भक्त दामाजी (1928) |
| परशुराम (1928) |
| कुमारी मिल्ल्चे शुद्धिकरण (1928) |
| श्रीकृष्ण शिष्टई (1928) |
| काचा देवयानी (1929) |
| चन्द्रहास (1929) |
| मालती माधव (1929) |
| मालविकाग्निमित्र (1929) |
| वसंत सेना (1929) |
| बोलती तपेली (1929) |
| संत मीराबाई (1929) |
| त मीराबाई (1929) |
| कबीर कमल (1930) |
| सेतु बंधन (1932) |
| गंगावतरण (1937)-दादा साहब फाल्के द्वारा निर्देशित पहली बोलती फिल्म है। |