सनातन धर्म में पूर्वजों (पितरों) को स्मरण और तर्पण करने की परंपरा को पितृ पक्ष कहा जाता है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। मान्यता है कि इन 16 दिनों तक पितृ लोक के द्वार खुल जाते हैं और हमारे पितृ अपनी संतानों को आशीर्वाद देने पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है।
पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होता है और सर्व पितृ अमावस्या तक चलता है।
तिथि का नाम (श्राद्ध तिथि) | दिनांक | दिन |
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पूर्णिमा श्राद्ध (पहला) | 7 सितंबर 2025 | रविवार |
प्रतिपदा श्राद्ध | 8 सितंबर | सोमवार |
द्वितीया श्राद्ध | 9 सितंबर | मंगलवार |
तृतीया श्राद्ध | 10 सितंबर | बुधवार |
चतुर्थी श्राद्ध | 10 सितंबर | बुधवार |
पंचमी (महा भरणी) श्राद्ध | 11 सितंबर | बृहस्पतिवार |
षष्ठी श्राद्ध | 12 सितंबर | शुक्रवार |
सप्तमी श्राद्ध | 13 सितंबर | शनिवार |
अष्टमी श्राद्ध | 14 सितंबर | रविवार |
नवमी श्राद्ध | 15 सितंबर | सोमवार |
दशमी श्राद्ध | 16 सितंबर | मंगलवार |
एकादशी श्राद्ध | 17 सितंबर | बुधवार |
द्वादशी श्राद्ध | 18 सितंबर | बृहस्पतिवार |
त्रयोदशी श्राद्ध | 19 सितंबर | शुक्रवार |
चतुर्दशी श्राद्ध | 20 सितंबर | शनिवार |
सर्वपितृ अमावस्या (अंतिम श्राद्ध) | 21 सितंबर | रविवार |
पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) हिंदू धर्म में पूर्वजों को स्मरण और तर्पण करने का विशेष काल है। माना जाता है कि इस दौरान पितृ लोक के द्वार खुलते हैं और पूर्वज अपने वंशजों के आह्वान से संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं। इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण, दान और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तथा परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पितृ पक्ष 2025 का आरंभ 7 सितंबर से हो रहा है और यह 21 सितंबर तक चलेगा। यह समय अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने और पितृ ऋण से मुक्ति पाने का है। जो लोग श्रद्धा और नियमपूर्वक श्राद्ध करते हैं, उनके घर परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।