लाल क़िले से लगातार बारहवीं बार स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ ऐसा कहा जो पिछले ग्यारह सालों में दिए भाषणों में नहीं कहा था।
उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का ज़िक्र करते हुए उसे दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ बताया और संघ की सौ साल की यात्रा की सराहना की। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सेवा, समर्पण, संगठन और अप्रतिम अनुशासन इस संगठन की पहचान रहे हैं।
ये बात छुपी हुई नहीं है कि पिछले कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी और संघ के बीच कई मुद्दों को लेकर तनातनी के हालात रहे हैं।
ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में आरएसएस का ज़िक्र करने के मायने बढ़ जाते हैं।
आरएसएस पर आने से पहले मोदी ने कहा, "हमारा स्पष्ट मत है, ये देश सिर्फ सरकारें नहीं बनाती हैं, ये देश राजसत्ता पर विराजमान लोग ही नहीं बनाते हैं, ये देश शासन की विधा संभालने वाले नहीं बनाते हैं। ये देश बनता है कोटि-कोटि जनों के पुरुषार्थ से, ऋषियों के, मुनियों के, वैज्ञानिकों के, शिक्षकों के, किसानों के, जवानों के, सेना के, मजदूरों के, हर किसी के प्रयास से देश बनता है। हर किसी का योगदान होता है। व्यक्ति का भी होता है, संस्थाओं का भी होता है।"
इसके बाद प्रधानमंत्री ने आरएसएस के बारे में बात करते हुए कहा, "आज मैं बहुत गर्व के साथ एक बात का ज़िक्र करना चाहता हूं। आज से सौ साल पहले एक संगठन का जन्म हुआ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सौ साल की राष्ट्र की सेवा का एक बहुत ही गौरवपूर्ण स्वर्णिम पृष्ठ है।"
उन्होंने कहा, "व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को लेकर के, सौ साल तक मां भारती का कल्याण का लक्ष्य लेकर के, लक्ष्यावधि स्वयंसेवकों ने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है।"
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए पीएम मोदी ने कहा, "सेवा, समर्पण, संगठन और अप्रतिम अनुशासन, यह जिसकी पहचान रही है, ऐसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का यह सबसे बड़ा एनजीओ है एक प्रकार से, सौ साल का उसका समर्पण का इतिहास है।"
"मैं आज यहां लाल किले के प्राचीर से सौ साल की इस राष्ट्र सेवा की यात्रा में योगदान करने वाले सभी स्वयंसेवकों को आदरपूर्वक स्मरण करता हूं और देश गर्व करता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस सौ साल की भव्य, समर्पित यात्रा को और हमें प्रेरणा देता रहेगा।"
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक बड़ी आलोचना ये रही है कि उसने ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं लिया था।
इसी संदर्भ में पीएम मोदी के अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में लाल किले से आरएसएस की तारीफ़ करने पर भी सवाल उठ रहे हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स पर लिखा, "स्वतंत्रता दिवस के भाषण में आरएसएस का महिमामंडन करना स्वतंत्रता संग्राम का अपमान है। आरएसएस और उसके वैचारिक सहयोगियों ने अंग्रेजों का साथ दिया है। वे कभी आज़ादी की लड़ाई में शामिल नहीं हुए और अंग्रेजों का जितना विरोध किया, उससे कहीं ज़्यादा गांधी से नफ़रत करते थे।"
Glorifying the RSS in an Independence Day speech is an insult to the freedom struggle. The RSS and its ideological allies served as British foot soldiers. They never joined the fight for independence and hated Gandhi more than they ever opposed the British.
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 15, 2025
Happy…
अपनी बात जारी रखते हुए वे कहते हैं, "गांधी की हत्या किसने की थी? वो थे जिनका पहला इंडॉक्ट्रिनेशन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हुआ था, 1930 के दशक में- नाथूराम गोडसे। नाथूराम गोडसे ने अपनी फांसी से पहले, जो आख़िरी चीज़ की थी वो थी आरएसएस की प्रार्थना गाना। तो आप समझ गए कि उनका रुझान क्या था।"
लाल क़िले की प्राचीर से पीएम मोदी के संघ की तारीफ़ को एक और बात से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि नेताओं को 75 साल की उम्र का हो जाने पर अपने पदों को छोड़ देना चाहिए।
इस टिप्पणी से ये सवाल उठा कि क्या भागवत मोदी को इशारे से कुछ कह रहे हैं क्योंकि सितंबर के महीने में मोदी 75 साल के हो जाएंगे।
बीजेपी में कई सालों से देखा गया है कि 75 साल की उम्र हो जाने पर नेता चुनाव नहीं लड़ते या अपना पद छोड़ देते हैं।
लेकिन क्या मोदी ऐसा करेंगे? गृह मंत्री अमित शाह अतीत में कह चुके हैं कि मोदी अपना कार्यकाल पूरा करेंगे और उनके प्रधानमंत्री पद पर बने रहने को लेकर बीजेपी में कोई भ्रम की स्थिति नहीं है।
इसी मुद्दे को छेड़ते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश, बाहरी" ने एक्स पर लिखा, "आज प्रधानमंत्री के भाषण का सबसे चिंताजनक पहलू लाल क़िले की प्राचीर से आरएसएस का नाम लेना था - जो एक संवैधानिक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की भावना का खुला उल्लंघन है। यह अगले महीने उनके 75वें जन्मदिन से पहले संगठन को खुश करने की एक हताश कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है।
लाल किले की प्राचीर से आज प्रधानमंत्री का भाषण बासी, पाखंडी, नीरस और चिंताजनक था।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 15, 2025
विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत और "सबका साथ, सबका विकास" जैसे वही दोहराए गए नारे साल-दर-साल सुने जा रहे हैं, लेकिन इनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। “मेड-इन-इंडिया” सेमीकंडक्टर चिप का वादा अनगिनत बार…
जयराम रमेश ने लिखा, "4 जून 2024 की घटनाओं के बाद से निर्णायक रूप से कमज़ोर पड़ चुके प्रधानमंत्री अब पूरी तरह मोहन भागवत की कृपा पर निर्भर हैं, ताकि सितंबर के बाद उनका कार्यकाल का विस्तार हो सके। स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय अवसर का व्यक्तिगत और संगठनात्मक लाभ के लिए राजनीतिकरण हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बेहद हानिकारक है।"∎