मुस्लिम समुदाय के आरएसएस में जुडने के सवाल पर क्या बोल मोहन भागवत ?

November 10, 2025
RSS, Mohan bhagwat

बीते दिनों कांग्रेस विधायक और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने आरएसएस पर और मोहन भागवत के बयान पर संघ पर सवाल खड़े किए। 

प्रियांक खड़गे ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, "देशभर में अपनी व्यापक मौजूदगी और असर के बावजूद भी आरएसएस क्यों अब तक बिना रजिस्ट्रेशन के है? "

उन्होंने इस पोस्ट के माध्यम से कुछ सवाल खड़े किए हैं जिनका हिन्दी अनुवाद ये है-

  • ये स्वयंसेवक कौन हैं और उनकी पहचान कैसे की जाती है?
  • दान का पैमाना और प्रकृति क्या है?
  • ये योगदान किन तंत्रों या माध्यमों से प्राप्त होते हैं?
  • यदि आरएसएस पारदर्शी तरीके से काम करता है, तो संगठन को सीधे उसकी अपनी पंजीकृत पहचान के तहत दान क्यों नहीं दिया जाता?
  • पंजीकृत संस्था न होते हुए भी आरएसएस अपने वित्तीय और संगठनात्मक ढांचे को कैसे बनाए रखता है?
  • पूर्णकालिक प्रचारकों को कौन भुगतान करता है और संगठन के नियमित संचालन संबंधी खर्चों को कौन पूरा करता है?
  • बड़े पैमाने के आयोजनों, अभियानों और आउटरीच गतिविधियों का वित्तपोषण कैसे किया जाता है?
  • जब स्वयंसेवक "स्थानीय कार्यालयों" से गणवेश या सामग्री खरीदते हैं, तो इन निधियों का हिसाब कहाँ रखा जाता है?
  • स्थानीय कार्यालयों और अन्य बुनियादी ढाँचे के रखरखाव का खर्च कौन वहन करता है?
  • ये सवाल पारदर्शिता और जवाबदेही के एक बुनियादी मुद्दे को रेखांकित करते हैं।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी व्यापक राष्ट्रीय उपस्थिति और प्रभाव के बावजूद अपंजीकृत क्यों बना हुआ है?
  • जब भारत में प्रत्येक धार्मिक या धर्मार्थ संस्था को वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखना आवश्यक है, तो आरएसएस के लिए समान जवाबदेही तंत्र के अभाव का क्या औचित्य है?

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि 'देश में बहुत कुछ है जो रजिस्टर्ड नहीं है, यहां तक कि हिन्दू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है।'

दरअसल, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर कार्यक्रम में कुछ सवालों के जवाब दिए।

उनसे इस कार्यक्रम में पूछा गया, "आरएसएस एक रजिस्टर्ड संस्था क्यों नहीं है? क्या ऐसा महज़ एक संयोग है, या संघ ने स्वेच्छा से इसे रजिस्टर्ड नहीं कराया है या फिर किसी भी क़ानूनी बाध्यता से बचने के लिए ऐसा किया गया है?"

मोहन भागवत ने इस पर कहा, बाहरी" मोहन भागवत ने इस पर कहा, "असल में हम कोई असंवैधानिक संगठन नहीं हैं, हम संविधान के दायरे में एक संगठन हैं। हमारी वैधता इसी संविधान के अधीन है। इसलिए हमें रजिस्ट्रेशन की कोई ज़रूरत नहीं है। कई चीज़ें हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं। यहां तक कि हिन्दू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है।"

उन्होंने कहा, "इस सवाल का कई बार जवाब दिया जा चुका है। संघ की स्थापना साल 1925 में हुई थी। क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के पास अपना रजिस्ट्रेशन कराते, जिनके ख़िलाफ़ उस वक़्त हमारे सरसंघचालक लड़ाई लड़ रहे थे।"

"आज़ादी के बाद जो क़ानून हमारे पास हैं, वो रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य नहीं बनाते हैं। क़ानूनी तौर पर हम बॉडी ऑफ़ इंडिविजुअल्स यानी निजी लोगों की संस्था हैं. हम मान्यता प्राप्त संगठन हैं।"

मोहन भागवत के इस बयान के बाद "कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद, बाहरी" कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने कहा, "यह देश का सबसे बड़ा झूठ है। लोग मोहन भागवत से ऐसी उम्मीद नहीं रखते हैं। जब देश में ब्रिटिश शासन था तब कोई राजनीतिक दल या एनजीओ का रजिस्ट्रेशन नहीं करता था। जब हमने संविधान को अपनाया, उसके बाद हर भारतीय का यह फ़र्ज़ था कि वो संविधान और देश के लिए जवाबदेह हो।"

"वो दुनिया का सबसे बड़ा संगठन होने का दावा करते हैं. उनके सदस्यों की सूची कहाँ है। वो कहते हैं कि गुरु पूर्णिमा या विजयादशमी जैसे मौक़ों पर उन्हें स्वयंसेवकों से चंदा मिलता है। इसका बैंक खाता कहाँ है? उन्हें कहाँ से पैसे मिलते हैं? हम ये सवाल पूछते रहे हैं। अगर कुछ ग़लत हो जाता है, यह किसकी जवाबदेही होगी? "

संविधान के दायरे में है आरएसएस

बेंगलुरु के इस कार्यक्रम में मोहन भागवत से संघ की अवधारणा और रजिस्ट्रेशन और फ़ंडिंग से जुड़े मामले शामिल पर भी सवाल किए गए।

इन मुद्दों पर भागवत ने कहा, "इनकम टैक्स विभाग ने हमसे टैक्स भरने के लिए कहा, और इससे जुड़ा एक क़ानूनी मामला भी था। कोर्ट ने कहा कि यह निजी लोगों की संस्था है और हमें जो गुरुदक्षिणा मिलती है वो इनकम टैक्स के दायरे से बाहर है।"

भागवत ने कहा, "हम पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया। इसका मतलब है, सरकार ने हमें मान्यता दी. अगर हमारा अस्तित्व नहीं था तो सरकार ने किस पर प्रतिबंध लगाया। और हर बार कोर्ट ने प्रतिबंध को हटाया और आरएसएस को एक वैध संगठन बनाया।"

मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस के ख़िलाफ़ कई बार बयान दिए गए और संसद में भी आरएसएस की बात की गई, जो इसे मान्यता देने का सबूत है।

मुसलमानों और अन्य धार्मिक लोगों की आरएसएस में एंट्री को लेकर विवाद 

मुसलमान या किसी भी अन्य धार्मिक समुदाय के लोगों के आरएसएस से जुडने के सवाल पर मोहन भागवत ने कहा है की इस समुदाय में केवल हिंदुओं को लिया जाता है।

दरअसल उनसे पूछा गया था कि, "क्या मुस्लिमों को संघ में शामिल होने की अनुमति है, संघ अल्पसंख्यकों के बीच भरोसा कैसे बना सकता है? "

मोहन भागवत ने कहा, "संघ में किसी ब्राह्मण के लिए कोई जगह नहीं है, संघ में किसी अन्य जाति को आने की भी अनुमित नहीं है। न मुस्लिम, न ईसाई, न ही शैव और न ही शाक्त किसी को संघ में शामिल होने की अनुमति नहीं है. यहाँ केवल हिन्दुओं को अनुमति है।"

"भागवत ने कहा, यानी अलग-अलग मज़हब के लोग, मुस्लिम, ईसाई कोई भी संघ में आ सकता है लेकिन आपको अपनी अलग पहचान दूर रखनी होगी। आपकी ख़ासियतों का स्वागत है। लेकिन जब आप शाखा में आते हैं तो आप भारत माता के बेटे होते हैं। यानी इस हिन्दू समाज का एक सदस्य हो जाते हैं।"

"मुस्लिम शाखा में आते हैं, क्रिश्चन भी शाखा में आते हैं, जैसे अन्य जातियों के लोग आते हैं। लेकिन हम उनकी गिनती नहीं करते हैं और न ये पूछते हैं कि आप कौन हैं। हम सभी भारत माता के बेटे हैं और संघ इसी आधार पर काम करता है।"

उनसे यह भी पूछा गया की ककया वह अन्य धर्म या जाति के लोगों तक पहुँचने और उनकी शिक्षा को लेकर कुछ कार्य किए जाते हैं?

इस पर भागवत ने कहा, "असल में हम किसी के लिए कुछ नहीं करते हैं। हर किसी को अपना कर्तव्य करना होता है, हर किसी को अपना उद्धार करना होता है। कोई आपके पास नहीं आएगा। यहां तक कि भगवान भी उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद करता है।"∎

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