भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक नारी शक्ति ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई, उनमें से एक थीं दुर्गाबाई देशमुख। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, बल्कि स्वतंत्र भारत में समाज सेवा, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में भी ऐतिहासिक योगदान दिया।
जन्म |
15 जुलाई 1909 राजमुंदरी, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (अब आंध्र प्रदेश, भारत) |
मृत्यु |
9 मई 1981 नरसन्नापेटा, आंध्र प्रदेश, भारत |
पति | सी.डी. देशमुख (विवाह 1953) |
अल्मा मेटर | मद्रास विश्वविद्यालय |
पुरस्कार | पद्म विभूषण |
दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को आंध्र प्रदेश के राजमुंद्री में हुआ था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में रुचि लेना शुरू कर दिया था। महज 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने बाल विवाह का विरोध करते हुए अपने पति से अलग होने का साहसिक निर्णय लिया।
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उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद वकालत की पढ़ाई की और एक सफल वकील बनीं। बाद में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में भी उच्च शिक्षा प्राप्त की। वह मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक और कानून की डिग्री धारक थीं।
दुर्गाबाई देशमुख महात्मा गांधी से अत्यधिक प्रभावित थीं। उन्होंने नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल भेजा, लेकिन उनका संकल्प कभी नहीं टूटा। उन्होंने आंध्र प्रदेश में महिलाओं और युवाओं को आंदोलन से जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद दुर्गाबाई देशमुख ने सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों में खुद को समर्पित कर दिया। उन्होंने अंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत है। वह महिला सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक थीं और उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा और पर्दा प्रथा के खिलाफ अभियान चलाए।
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दुर्गाबाई देशमुख संविधान सभा की सदस्य भी रहीं और उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने योजना आयोग की सदस्य के रूप में भी कार्य किया और सामाजिक कल्याण योजनाओं की दिशा तय की।
उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण (1975) से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया।
दुर्गाबाई देशमुख का निधन 9 मई 1981 को हुआ। लेकिन उनके विचार, उनके कार्य और उनकी प्रेरणा आज भी भारतीय समाज में जीवित हैं।
दुर्गाबाई देशमुख भारतीय महिला शक्ति की प्रतीक थीं। उन्होंने जीवन भर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, शिक्षा को हर व्यक्ति का अधिकार माना और महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत की आज़ादी और निर्माण की कहानी में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।