मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) एक भारतीय राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, शिक्षाविद् और नौकरशाह हैं, जिन्होंने 2004 से 2014 तक भारत के 14वें प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य, सिंह भारत के पहले सिख प्रधान मंत्री थे।
| नाम | डॉ. मनमोहन सिंह |
| जन्म | 26 सितम्बर 1932 |
| जन्म स्थान | गाह, वर्तमान पाकिस्तान |
| पिता | गुरुमुख सिंह |
| माता | अमृत कौर |
| पेशा | राजनेता, अर्थशास्त्र |
| पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| पद | प्रधामंत्री, वित्तमंत्री, रिजर्व बैंक के गवर्नर |
| मृत्यु | 26 दिसंबर 2024 |
मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय और ग्रेट ब्रिटेन में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से क्रमशः 1952 और 1954 में अर्थशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपना इकोनॉमिक ट्रिपोस पूरा किया। इसके बाद उन्होंने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया।
वित्त मंत्री (1991-1996) : डॉ. सिंह ने 1991 से 1996 तक तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के अंतर्गत भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान, उन्होंने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाना, व्यापार बाधाओं को कम करना और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना शामिल था। इन सुधारों को अक्सर भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और बाद के वर्षों में इसके आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय दिया जाता है।
विपक्ष में : 1996 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद, मनमोहन सिंह शिक्षा जगत में लौट आये। हालाँकि, उन्होंने भारत में आर्थिक नीति संबंधी चर्चाओं में योगदान देना जारी रखा और सार्वजनिक जीवन में शामिल रहे।
प्रधान मंत्री (2004-2014) : वर्ष 2004 में, डॉ. मनमोहन सिंह को भारत के 14वें प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जो 2014 तक लगातार दो कार्यकाल तक रहे। उनके कार्यकाल के दौरान, उनकी सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी सहित कई नीतियों को लागू किया। उनके सरकार की कुछ प्रमुख उपलब्धियां हैं - अधिनियम (नरेगा), सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई), और भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौता।
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, जो स्वतन्त्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला है। उस घोटाले में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार एक लाख छिहत्तर हजार करोड रुपये का घपला हुआ है। इस घोटाले में विपक्ष के भारी दबाव के चलते मनमोहन सरकार में संचार मन्त्री ए० राजा को न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, अपितु उन्हें जेल भी जाना पडा। केवल इतना ही नहीं, भारतीय उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में प्रधानमन्त्री सिंह की चुप्पी पर भी सवाल उठाया।

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